महामारी और उसके ऊपर महंगाई

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बीते बीस माह से कोरोना महामारी ने देशवासियों का जीवन में तमाम तरह की दुश्वारियां से भर दिया है। इसका असर आम आदमी के स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ा है उसको कमाई बचत और निवेश पर भी पड़ा है। देश की 88 फीसदी आबादी ऐसी है जिसकी कमाई और बचत घटी है तथा 28 फीसदी लोगों को नौकरियांा जाने के कारण अपनी बचत या फिर कर्ज लेकर जीवन यापन पर मजबूर होना पड़ा है देश वासियों ने कोरोना काल में अपनों को खोने का ही दर्द नहीं झेला है बल्कि मानसिक और शारीरिक जो यातनांए झेली उसका उनके स्वास्थ्य और स्वभाव पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कोरोना से जंग जीतने वाले तमाम लोग ऐसे हैं जो अभी भी स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं से ग्रसित हैं और उनका कहना है कि वह अब जीवन में कभी पूरी तरह से स्वस्थ हो भी पाएंगे या नहीं कहा नहीं जा सकता है। बेरोजगारी और घटती आय के बीच खराब वक्त के साथ जी रहे लोगों को बढ़ती महंगाई ने भी मुश्किल में डाल रखा है। बीते डेढ़ साल में पेट्रोल डीजल और रसोई गैस की कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। पेट्रोल की कीमत अधिकांश राज्यों में सौ के पार और डीजल की कीमतें 90 के पार पहुंच चुकी हैं। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत इस समय अपने निम्नतम स्तर 68 डालर प्रति बैरल पर है। सत्ता में बैठे लोग भले ही तेल की कीमतें तेल कंपनियों द्वारा तय किए जाने की बात कहें या फिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों के तय होने की बात कहें लेकिन यह सब झूठ है। देश में केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा पेट्रोलियम पर वसूले जाने वाला अनाप—शनाप टैक्स इन बढ़ी कीमतों का कारण है। जहां तक रसोई गैस सिलेंडर की कीमत की बात है तो केंद्र सरकार ने इससे सब्सिडी को लगभग खत्म कर दिया है अभी बीते 2 दिन पहले रसोई गैस सिलेंडर के दामों में 25 रूपये की भारी—भरकम बढ़ोतरी की गई है। जिसके बाद अब रसोई गैस सिलेंडर 900 रूपये के करीब पहुंच गया है। पेट्रोल और डीजल तथा रसोई गैस की इन बेतहाशा बढ़ी कीमतों का असर आम आदमी के जीवन पर पड़ना स्वाभाविक है वही ट्रांसपोर्टेशन खर्च बढ़ने से अन्य आम उपभोग की वस्तुओं का महंगा होना भी लाजमी है खाघ तेलों से से लेकर दाल—आटा, चावल, चीनी सब कुछ मिलाकर 20 माह में 23 फीसदी की मूल्य वृद्धि ने आम आदमी का जीवन दूभर कर दिया है। गरीब और आम आदमी के लिए दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल हो गया है और वह अपने परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पा रहा है। खास बात यह है कि सत्ता में बैठे लोगों के लिए यह मुद्दा कोई मुद्दा नहीं रह गया है न वह यह सोचने को तैयार है कि आम आदमी का हाल क्या है?

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