कांग्रेस में वर्चस्व का खेला होवै

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उत्तराखंड कांग्रेस में वर्चस्व की जंग अभी समाप्त नहीं हो सकती है सुबे के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को कोई पद या सम्मान संतुष्ट नहीं कर सकता है। पार्टी हाईकमान ने 2022 के चुनाव के मद्देनजर प्रदेश अध्यक्ष बदलने के साथ जिन 10 समितियों के माध्यम से हर छोटे बड़े नेता को जिम्मेवारी सौंपकर एकजुटता के जो प्रयास किए गए थे वह कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। इसका एकमात्र कारण है एकाधिकार की चाहत। नेता विपक्ष इंदिरा हृदयेश के निधन से पूर्व कांग्रेस में चुनावी चेहरे (भावी सीएम) को लेकर घमासान देखा जा रहा था। हरीश रावत और उनके समर्थक चाहते थे कि चुनाव पूर्व ही सीएम का चेहरा घोषित कर दिया जाए जबकि प्रीतम सिंह और इंदिरा इसके कतई भी पक्ष में नहीं थे लेकिन उनके आकस्मिक निधन से सारी कहानी ही बदल गई। प्रीतम को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने और तमाम शत्तिQयों को स्वयं संग्रहित करने का आसान रास्ता हरीश रावत व उनके समर्थकों को मिल गया। जो पार्टी हाईकमान ने बड़ा फेरबदल किया है वह शायद इंदिरा हृदयेश के जीवित रहते संभव नहीं था। मुद्दा जो मुख्यमंत्री के चेहरे का था वह नेता विपक्ष के चुनाव का मुद्दा बन गया। इस पूरी कवायद मेंं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत न सिर्फ 2022 के चुनाव की पूरी बागडोर अपने हाथ में ले चुके हैं बल्कि गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा कर संगठन पर अपना कब्जा जमा चुके हैं। बीते कल हुए इस बड़े फेरबदल के बाद से अब इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है कि क्या हरीश रावत को हाईकमान ने सीएम का चेहरा घोषित कर दिया? यह सत्य है कि हरीश रावत को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया है जिनकी देखरेख में चुनाव लड़ा जाएगा। उन्हें न सीएम का चेहरा घोषित किया और न कांग्रेस उनके चेहरे पर चुनाव मैदान में जा रही है लेकिन नए प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने यह कहकर कि जब चुनाव हरीश रावत के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है तो वही सीएम का चेहरा है। यह पुख्ता कर दिया है कि हरीश रावत व उनके समर्थक खेला कर चुके हैं भले ही अब प्रीतम सिंह जैसे नेता चिल्लाते रहे कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अथवा नवप्रभात जैसे नेता हाईकमान के फैसले से नाराज हो। इससे अब कुछ नहीं होने वाला है। अगर कुछ होने वाला है तो वह कांग्रेस का चुनावी नुकसान है। पार्टी के अंदर जिस तरह की राजनीति और अंतर कलह जारी है उसके साथ यदि कांग्रेस 2022 में चुनाव जीतने का सपना देख रही है तो वह सपना बनकर ही रह जाएगा।

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