कांग्रेस ने हरीश रावत पर लगाया दांव

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एक महीने लंबी चली कवायद के बाद आखिरकार कांग्रेस ने 2022 के लिए अपनी चुनावी टीम की घोषणा कर ही दी। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत न सिर्फ इस टीम के नए कप्तान होंगे बल्कि प्रदेश अध्यक्ष के चयन से लेकर सभी 10 कमेटियों में उनके दबदबे को साफ देखा जा सकता है। प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर नेता विपक्ष बना दिया गया है जो वह नहीं चाहते थे। इस नई टीम में तमाम नामों पर गौर करने पर यह साफ देखा जा सकता है कि प्रीतम सिंह ही नहीं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से लेकर नवप्रभात तक कई नेताओं को हाशिए पर धकेल दिया गया है। जो कुछ थोड़ा बहुत संतुलन दिखाई देता है तो उसका कारण भी प्रीतम सिंह का वह दबाव ही रहा है जिसके कारण इस टीम की घोषणा में इतना लंबा समय लग गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हरीश रावत कांग्रेस के बड़े और अनुभवी नेता हैं तथा दिल्ली दरबार में उनकी सबसे मजबूत पकड़ है लेकिन हरीश रावत क्या अकेले पार्टी हो सकते हैं या चुनाव जीतने और सरकार चलाने के लिए काफी है यह विषय स्वयं हरीश रावत के लिए विचारणीय है। उनके मुख्यमंत्री रहते पार्टी के दर्जनभर नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे इस घटना के कारणों पर हाईकमान से लेकर स्वयं हरीश रावत ने क्या कभी विचार किया? 2017 के चुनाव में पार्टी की शर्मनाक हार के लिए कौन जिम्मेवार था? तथा यह हार क्यों हुई? यह सवाल बहुत गंभीर सवाल है। कांग्रेसी नेता या हरीश रावत पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहते तो न देखें लेकिन बिना आगे देखें चलने की कोशिश के परिणाम भी अच्छे नहीं हो सकते। हरीश रावत अब जिनके कंधों पर संपूर्ण चुनावी व्यवस्था और चुनाव जिताने की जिम्मेदारी है उन्हें अब बेहतर चुनाव परिणाम की जिम्मेवारी भी लेनी होगी। भले ही पार्टी ने उन्हें सीएम का चेहरा घोषित न किया हो लेकिन सीएम का अघोषित चेहरा भी वही है। इसलिए सीधी बात यह है कि अब हरीश रावत जाने और उनका काम जाने। भले ही प्रीतम सिंह जैसे नेता यह कह रहे हो कि पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं जो जिम्मेवारी मिली है उसे निभाऊंगा और 2022 में कांग्रेस को सत्ता में लाने का काम करेंगे लेकिन उधर नवप्रभात और किशोर उपाध्याय जैसे नेता भी जिन की नाराजगी साफ तौर पर देखी जा रही है नवप्रभात ने तो कोई पद लेने तक से इन्कार कर दिया है। नए प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल इस नाराजगी से कैसे निपटते हैं यह वही जान सकते हैं। भले ही संतुलन साधने के चक्कर में उत्तराखंड में भी कांग्रेस ने पंजाब फार्मूले की तर्ज पर एक अध्यक्ष के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष लटका दिए गए हो लेकिन यह फार्मूला कितना सफल और असफल रहेगा यह आने वाले चुनाव परिणाम ही बताएंगे।

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