देहरादून और टिहरी वासियों को आज सुबह अखबारों की यह हेडलाइन पढ़कर निश्चित तौर पर अत्यंत ही सुखद एहसास की अनुभूति हुई होगी कि दून से टिहरी झील तक 35 किलोमीटर लंबी डबल लेन टनल बनने जा रही है जिसके बनते ही दून से टिहरी आप फर्राटा भरते सिर्फ एक घंटे में झील में नौका विहार करते नजर आएंगे। भले ही अभी केंद्रीय परिवहन मंत्रालय द्वारा इसके प्रस्ताव को मंजूरी भी नहीं की गई हो लेकिन डबल इंजन की सरकार पर अगर आपको भरोसा है कि वह बातें कम काम ज्यादा के सिद्धांत पर चलती है तो फिर आपका यह सपना बहुत जल्द पूरा होने वाला है। आपको याद होगा कि राजधानी दून में मेट्रो दौड़ने वाली थी जब उसको स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल कर लिया गया है तो कुछ न कुछ तो स्मार्ट सिटी के नाम पर होगा भले ही मेट्रो ट्रेन दौड़े न दौड़े इसकी जगह कुछ तो दौड़ाया ही जा सकता है। वैसे भी अभी मेट्रो का प्लान पूरी तरह रद्द नहीं किया गया है। दून और मसूरी के लोगों ने कुछ समय पहले ऐसा ही पढ़ा और सुना होगा जिसमें दून से मसूरी तक रोपवे बनाने की बात कही गई थी। उस समय भी आपको लगा होगा कि वाह क्या मजा आएगा? न पहाड़ से मलबा आने और जमा होने पर घंटों फसंने का झंझट न खाई में गिर कर मरने का डर। चंद मिनटों में ही प्रकृति के नजरों का अब लुफ्त लेते हुए आप दून से मसूरी और मसूरी से दून में घूमते नजर आएंगे। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है यह योजना कब पूरी होगी यह तो पता नहीं लेकिन एक दिन पूरी जरूर होगी क्योंकि हमारी सरकारें बातें कम और काम ज्यादा करती हैं। ऋषिकेश के झूला पुल के बारे में भी शायद आपको याद होगा जिसकी जगह वैसा ही नया झूला पुल बनाने की चर्चा आम थी। खैर छोड़िए राज्य की सड़कों और पुलों की बात कर लेते हैं। यहां हर मानसूनी आपदा के कारण दर्जनों पुल पुलिया और सड़कें टूट जाती हैं जिनकी सालों साल न तो मरम्मत हो पाती है और न ही निर्माण। सरकारी फाइलों में ऐसे सैकड़ों प्रस्ताव व मांग पत्र धूल फांक रहे होंगे जो बहुत जरूरी हैं। बात 2012 की है जब उत्तरकाशी में गंगोत्री राजमार्ग पर असी गंगा का गंगोरी पुल टूट गया था जो आज तक भी नहीं बन सका है दो बार बीआरओ द्वारा बनाया गया अस्थाई पुल भी साल दो साल से ज्यादा नहीं टिक पाए हैं। खास बात यह है कि यह पुल सामरिक दृष्टि से अति महत्व का है। जो सरकारें और नेता 10 साल में एक छोटा सा पुल न बना सके वह 35 किलोमीटर लंबी डबल लेन टनल बनाने का दावा कर रहे हैं। जिस पर सिर्फ आशा ही जा सकता है। अंग्रेजों ने दून तक ट्रेन पहुंचा दी जिसे 75 सालों में मंसूरी तक नहीं पहुंचाया जा सका है। सूबे की सड़कों व पुलों की क्या स्थिति है? यह सभी जानते हैं सिर्फ बातें और वह भी सिर्फ हवाई इन बातों से क्या होना है।