उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इन दिनों राज्य के कोने—कोने की खाक छान रहे हैं। उनके द्वारा विकास योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण तो किया ही जा रहा है इसके साथ ही वह जिस भी क्षेत्र में जाते हैं घोषणाओं और सौगातों की झड़ी लगा देते हैं। उनकी योजनाओं को चुनाव से पहले कितना अमली जामा पहनाया जा सकेगा उन्हें इस बात का पूरा एहसास है। चुनाव से पूर्व सूबे की जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए जो भी किया जा सकता है उसमें वह कोई कोर कसर उठाकर नहीं रखना चाहते। भाजपा व उनकी सरकार के सामने समस्या यह है कि सरकार ने साढे़ चार साल में कुछ किया ही नहीं। और जो कुछ किया भी वह विवादों के घेरे में है। जिसका उदाहरण है देवस्थानम बोर्ड का गठन और गैरसैंण को तीसरा मंडल बनाने की घोषणा जैसे काम। मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि वह राज्य को शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के क्षेत्र में अव्वल बढ़ाने की कार्य योजनाओं पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों को इसका खाका तैयार करने के निर्देश दिए हैं। काश भाजपा की सरकार और मुख्यमंत्रियों ने विकास का यह खाका कुछ समय पहले खींच लिया होता। उन्हें न तो एन चुनाव के पूर्व बार—बार मुख्यमंत्री बदलने पड़ते और न अब जनता को अपनी उपलब्धियों को बताने में कोई दिक्कत आ रही होती। ऐसा भी नहीं है कि वर्तमान भाजपा की सरकार राज्य में पहली सरकार है भाजपा ने इससे पहले कभी राज्य में ऐसा चमत्कार क्यों नहीं कर के दिखाया जो धामी अपने 6 माह के कार्यकाल में करने का सपना दिखा रहे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री के पास अगर कोई जादू की छड़ी है तो उन्हें सबसे पहले इस राज्य की खस्ताहाल सड़कों और टूटे पुल पुलियों का ही निर्माण चुनाव से पूर्व कराना चाहिए जिसके कारण हजारों गांव तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। जिस चार धाम यात्रा को बंद पड़े 2 साल हो चुके उसे ही शुरू कराने का साहस दिखाएंं। मुख्यमंत्री धामी को यह अच्छी तरह से पता है कि जो हाल इन दिनों चार धाम यात्रा मार्गों का है बिना किसी तैयारी के इस यात्रा को शुरू नहीं कराया जा सकता है जब आवागमन ही संभव नहीं है और सड़क एवं पुल टूटे पड़े है ऐसे में यह यात्रा भला कैसे संभव है। अब इसे लेकर चाहे पुजारी पंडित हल्ला करे या व्यवसायी कुछ नहीं हो सकता है। दावें एवं घोषणाएं अलग बात है लेकिन धरातल की सच्चाई को नकार पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। आने वाले समय में सीएम की कठिन परीक्षा देवस्थानम बोर्ड व भू—कानून तथा चारधाम यात्रा जैसे मुद्दे लेंगे। क्योंकि अब कोरोना का बहाना भी नहीं चल सकता है। जब जन आशीर्वाद यात्रा व परिवर्तन यात्रा आयोजित की जा सकती है तो चारधाम यात्रा में क्या दिक्कत है? इसका कोई जवाब सरकार के पास नहीं है। सीएम अगर घोषणाओं व सौगातों की बरसात के दम पर चुनाव जीतने की सोच रहे तो अलग बात है लेकिन काम के दम पर उनकी राह आसान नहीं है।