बेकाबू जंगल की आग, एनडीआरएफ ने संभाला मोर्चा

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  • अब तक 750 हेक्टेयर जंगल जले, करोड़ों का नुकसान
  • आग रोकने पर करोड़ों रुपए हर साल होते हैं खर्च
  • अब बारिश ही दिला सकती है निजात

देहरादून। उत्तराखंड के जंगल धूं—धूं कर जल रहे हैं। आग पर काबू पाने के सभी प्रयास विफल साबित हो रहे हैं। अब तक सूबे में कुल छोटी बड़ी वनाग्नि के 600 से अधिक घटनाओं में करोड़ों की संपदा जलकर राख हो चुकी है। वन विभाग और शासन—प्रशासन इन जंगलों में लगी आग को रोकने में नाकाम साबित हो चुका है। आज इस आग को बुझाने के लिए एनडीआरएफ को भी बुला लिया गया है लेकिन बेकाबू आग को अब सिर्फ बारिश का भरोसा है जो इस आफत से मुक्ति दिला सकती है।
हर साल जंगल की आग से जंगल और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है लेकिन इस आग को रोक पाना संभव नहीं है। हर साल करोड़ों रुपए आग रोकने के लिए पानी में बहा दिए जाते हैं और करोड़ों की संपदा का नुकसान होता है। इन दिनों नैनीताल के जंगलों की आग ने सबसे विकराल रूप ले रखा है। एयरफोर्स के एमआई—17 से आग बुझाने के प्रयास किए गए जो नाकाम साबित हुए। अब आज एनडीआरएफ की एक बटालियन जिसमें 40 लोग हैं उन्हें आग बुझाने के काम में लगाया गया है जबकि 70 से अधिक वनकर्मी भी आग बुझाने में जुटे हुए हैं लेकिन उन्हें कोई कामयाबी मिलती नहीं दिख रही है। तेज हवाओं के कारण यह आग विकराल रूप ले चुकी है।
नैनीताल के भवाली से ऊपर महेश खान में लगी आग से वन जीव जंतुओं और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है। राज्य में अब तक 750 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग से जल चुका है। बागेश्वर और अल्मोड़ा तथा पौड़ी व नैनीताल के कई हिस्सों में आग की लपटे आवासीय क्षेत्रों तक पहुंच गई है जिससे लोग दहशत में है तथा जंगल की आग के कारण पहाड़ धुआ—धुआ हो रहा है और लोगों का सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। बागेश्वर में एक फैक्ट्री के 12 कमरे जल चुके हैं तथा 30 लाख का नुकसान हुआ है। अल्मोड़ा, पौड़ी व पिथौरागढ़ से लेकर उत्तरकाशी और चमोली तक जंगल जल रहे हैं। इस आग को इंसानी प्रयासों से बुझाया जाना असंभव हो चला है। मौसम विभाग द्वारा राज्य के 7 जिलों में बारिश की संभावना जताई गई है अब इस आसमानी बारिश से यह उम्मीद लगाई जा रही है कि शायद इस आपदा से राहत मिल सके।

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