सोशल मीडिया के हवाले देश

0
508

डिजिटल इंडिया के वर्तमान दौर में सोशल मीडिया जो सबसे प्रभावी और मारक चुनावी हथियार बन चुका था उसी सोशल मीडिया की आंधी में अब सोशल सरोकारों के मुद्दे तिरोहित होते दिख रहे हैं। भाजपा ने अपने सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को और अधिक प्रभावी बनाने का एक और नायाब तरीका तलाश कर लिया है। भाजपा अपने प्रत्याशियों को टिकट बंटवारे के मापदंडों में हर टिकट के दावेदार की लोकप्रियता का आकलन उसकी सोशल मीडिया पर सक्रियता और उसके फालोवर्स के आधार पर करेगी। इस आशय की जानकारी मिलते ही तमाम भाजपा के युवा और टिकट के दावेदारी की लाइन में खड़े नेताओं द्वारा अचानक सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता बढ़ा दी गई है उनकी यह कोशिश उन्हे भाजपा का टिकट दिलवाने में कितनी सहायक सिद्ध होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन भाजपा के नेताओं से पार्टी का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और अधिक मजबूत जरूर होगा। उत्तराखंड में अभी भाजपा के 15000 से अधिक व्हाट्सएप ग्रुप है जो बूथ, मंडल, जिलों और संगठन से संबद्ध है। इसके साथ ही प्रदेश प्रभारी मीडिया सेल, कोर ग्रुप मोर्चा, विधायकों और दर्जा धारियों के अलग ग्रुप है। जिनके माध्यम से पार्टी की तमाम गतिविधियों और सूचनाओं का आदान प्रदान किया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत पकड़ बनाने में सोशल मीडिया ने ही सबसे अहम भूमिका निभाई है। लेकिन तेजी से बदलते हालात में सोशल मीडिया के बेजा इस्तेमाल से बड़ा नुकसान भी देश और समाज को हुआ है। सोशल मीडिया की इस आंधी में राष्ट्रीय और सामाजिक वह मुद्दे जो सबसे अधिक महत्व के थे न जाने कहां गुम हो चुके हैं नेताओं द्वारा सोशल मीडिया पर जो प्रचारित और प्रसारित किया जाता है वह उनका और पार्टी का विज्ञापन ही होता है जिसमें सिर्फ आधा सच ही होता है। उदाहरण के तौर पर अगर कोरोना वैक्सीनेशन की ही बात की जाए तो लंबे समय से उत्तराखंड में संपूर्ण वैक्सीनेशन की बात प्रचारित की जा रही है जबकि सच यह है कि अभी लोगों को शत—प्रतिशत पहली डोज ही नहीं लग पाई है ऐसे हजारों लोग हैं जिनको अभी एक भी डोज नहीं लगी है। काबीना मंत्री हरक सिंह का कहना है कि चुनाव जीतने के लिए सिर्फ अच्छा काम ही काफी नहीं है। उनका यह कथन सौ फीसदी सही है। अब न तो टिकट उन लोगों को मिलता है जो जन सेवा करना चाहते हैं या जिन्होंने जन सेवा की है। टिकट पाने के जैसे बहुत से फंडे हैं वैसे ही चुनाव जीतने के भी काम व जनसेवा के अलावा बहुत सारे फंडे होते हैं। जनता से बड़े—बड़े लोकलुभावन वायदे, मुफ्त का राशन, पानी—बिजली कर्ज माफ और सम्मान राशियों से लेकर शराब तक। भाजपा अगर सोशल मीडिया की लोकप्रियता को टिकट बंटवारे में आधार बनाती है तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है क्योंकि अब राजनीति के लिए नेताओं को गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसी बातें नहीं सुहाती हैं क्योंकि देश अब डिजिटल इंडिया बन चुका है और सब कुछ सोशल मीडिया के हवाले हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here