मतदान के बाद भी घोषणाओं की झड़ी

0
583

उत्तराखंड में भले ही बहुत पहले मतदान हो चुका हो, लेकिन अभी दावों व वायदों की झड़ी लगाने में भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच होड़ मची हुई है। इसके पीछे के कारण भले ही भविष्य के स्वयंभू मुख्यमंत्री जानते होंगे लेकिन चुनाव के नतीजों पर अब इन घोषणाओं का कोई भी प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। मतदान से पूर्व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में सिविल ड्रेस कोड कानून लाने की बात कही गई थी। उन्हें जब लोगों ने याद दिलाया कि यह राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर है तो उन्होंने कहा कि हम अपनी सरकार बनने पर इसका प्रस्ताव विधानसभा से पारित कराकर केंद्र सरकार को भेजेंगे। बाद में मुख्यमंत्री धामी की इस घोषणा पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि उन्होंने जो मुद्दा उठाया है वह महत्वपूर्ण है तथा इस पर केंद्र सरकार विचार करेगी। अब मुख्यमंत्री धामी द्वारा पुलिस कर्मियों के ग्रेड पे पर भी बड़ा ऐलान किया है गया है। उनका कहना है कि भाजपा की प्रदेश में सरकार बनने के एक महीने के अंदर पुलिस ग्रेड पे पर फैसला लिया जाएगा। इस बाबत जब उनसे पूछा गया कि जब चुनाव आचार संहिता लागू होने से दो माह पूर्व आपने पुलिस की रैतिक परेड के दौरान ग्रैंड पे लागू करने की घोषणा कर दी थी तो फिर उसे क्यों पूरा नहीं किया गया? तो इसका जवाब था काम की अधिकता, जिसके कारण नहीं हो सका। ठीक वैसे ही मुख्यमंत्री धामी ने राज्य में सशक्त भू कानून को भी लेकर यह घोषणा की है कि सरकार बनते ही राज्य हित में सशक्त भू—कानून लाया जाएगा। अब वह राज्य में एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने की बात कह रहे हैं जिससे विदेश में पढ़ने या जाने वालों का डाटा भी संकलित किया जा सकेगा। यह बात उन्होंने यूक्रेन में फंसे राज्य के छात्रों के संदर्भ में कही। यही नहीं अन्य तमाम मसले ऐसे हैं जिसके बारे में मुख्यमंत्री धामी ही नहीं पूर्व सीएम हरीश रावत भी झड़ी लगाए हुए हैं। हरीश रावत तो मुंडन संस्कार करने वालों को पेंशन व अनुदान देने की घोषणा कर रहे हैं उनकी इन घोषणाओं को लेकर कई लोग उनका मजाक भी बना रहे हैं। लेकिन घोषणाओं का सिलसिला अभी भी अविराम जारी है और संभवत यह चुनाव परिणाम आने तक यूं ही जारी रहेगा। जब इन नेताओं से इनके पूर्व वायदों की घोषणाओं पर सवाल पूछा गया तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं होता है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात कही थी तथा भाजपा के घोषणा पत्र में 100 दिन में राज्य में लोकायुक्त गठन का वायदा किया गया था लेकिन उसे पूरे 5 साल तक पूरा नहीं किया गया। राज्य में मलिन बस्तियों के मालिकाना हक का वायदा हर बार चुनाव में किया जाता है लेकिन इसे आज तक लंबित रखा हुआ है। ठीक वैसे ही स्थाई राजधानी का मुद्दा है जिसे दो दशक में भी नहीं सुलझाया जा सका है। हमारे देश में एक ऐसी व्यवस्था भी होना जरूरी है कि चुनावी दौर में नेता जो कहे उसे करने की बाध्यता भी हो। भले ही नेताओं की यह सोच रही होगी कि वह जनता से कुछ भी कह दे जनता उनका भरोसा कर ही लेगी लेकिन ऐसा है नहीं। नेताओं को चुनाव नतीजों से भी इसका एहसास जरूर हो जाएगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here