आप और बसपा ने बिगाड़े चुनावी समीकरण
भाजपा को मोदी के नाम व केंद्र के काम का सहारा
हरीश रावत के सामने सम्मान बचाने की चुनौती
देहरादून। भले ही चुनाव से पूर्व सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस के नेता 2022 विधानसभा चुनाव में अपनी—अपनी जीत के दावे कर रहे हो लेकिन इस बार उत्तराखंड में सत्ता तक पहुंच पाना किसी भी दल के लिए आसान नहीं रहने वाला है। अब तक बारी—बारी से सत्ता का सुख भोगने वाली भाजपा और कांग्रेस दोनों की राह आसान रहने वाली नहीं है। आम आदमी पार्टी की जोरदार दस्तक और बसपा के सभी 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही गणित बिगाड़ सकती है।
भले ही भाजपा इस बार पूरे दमखम के साथ अपनी चुनावी तैयारियों में जुटी हो और अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा अमित शाह और जेपी नड्डा को चुनाव पूर्व तमाम कार्यक्रमों के माध्यम से हर—घर भाजपा घर—घर भाजपा का संदेश देने में जुटे हैं लेकिन पिछले चुनाव में 70 में से 57 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाली भाजपा को पता है कि अगर उसकी सरकार ने ठीक से काम किया होता तो उसे चुनाव से पूर्व बार—बार न तो मुख्यमंत्री बदलने पड़ते और न ही पूर्व मुख्यमंत्रियों के फैसलों को पलटना पड़ता। प्रधानमंत्री मोदी अभी 4 दिसंबर को अपनी एक रैली दून में कर चुके हैं इस रैली में प्रधानमंत्री मोदी के फोटो के साथ छपे पोस्टर जिसमें लिखा था फिर एक बार भाजपा सरकार, से यह साफ हो गया है कि भाजपा किसी राज्य के नेता के भरोसे या चेहरे पर चुनाव में नहीं जा रही है उसे मोदी के नाम और केंद्र सरकार के कामों का ही सहारा है। अब यह देखना होगा कि क्या मोदी 2017 की तरह एक बार फिर भाजपा को 60 के पार ले जा पाएंगे? जबकि इस बार कांग्रेस ही नहीं आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है तथा आप ने मुफ्त बिजली—पानी और बेरोजगार गारंटी जैसे वायदों का खजाना खोल दिया है। आम आदमी पार्टी जिसने कर्नल कोठियाल को अपना सीएम चेहरा घोषित कर दिया है जबकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सीएम के रूप में किसी भी नेता का चेहरा सामने रखने में हिचक रही है यह बेवजह नहीं है। उनके पास ऐसा कोई चमकदार चेहरा है ही नहीं जो जीत की गारंटी दे सके।
कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर, किसान आंदोलन और महंगाई तथा बेरोजगारी जैसे मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में है जो कितने प्रभावी हो पातें है यह समय ही बताएगा। 2017 के चुनाव में मिली हार और 2016 की भगदड़ ने कांग्रेस से ऐसा कुछ छीन लिया है जिसकी भरपाई की कोशिशों में जुटे हरीश रावत कितने कामयाब होंगे? इसका खुद कांग्रेस को भी भरोसा नहीं है। कभी उत्तराखंड की सियासत में थोड़ा सा दखल रखने वाली बसपा एक बार फिर चुनाव में आस्तीनें चढ़ा रही है मायावती व उनकी बसपा भले ही बहुत सक्रिय न दिख रही हो लेकिन उसका कैडर वोट अपना ही है जिसे वह भाजपा व कांग्रेस से छीन कर उनकी मुश्किलें बढ़ा सकती है।