किसान आंदोलन की आग

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सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में 10 माह से किसान आंदोलित है। भले ही इस आंदोलन की शुरुआत राजधानी दिल्ली से सटे यूपी हरियाणा और पंजाब राज्यों तक सीमित रही हो लेकिन धीरे—धीरे इस आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूप ले लिया है। खास बात यह है कि किसान बीते 10 माह से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं तथा आंदोलन के दौरान 100 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है। लेकिन केंद्र सरकार के रवैए में रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया है। बीते 22 जनवरी से लेकर अब तक यानी कि बीते 8 माह से तो सरकार ने इन किसानों से किसी तरह की वार्ता करने की भी जरूरत नहीं समझी है। शुरुआती दो माह में सरकार ने किसान नेताओं से वार्ता कर कानूनों को स्थगित रखने और समिति गठित कर बीच का रास्ता निकालने का सुझाव दिया था जिसे किसानों ने ठुकरा दिया था। किसानों की मांग है कि सरकार तीनों कानूनों को रद्द करें तथा वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून लाए। कुल मिलाकर किसानों मेंं सरकार के इस रवैए को लेकर इतना आक्रोश है कि वह किसी भी कीमत पर अपना आंदोलन वापस न लेने और आर पार की लड़ाई के लिए तैयार दिख रहे हैं। मुजफ्फरनगर की महापंचायत में इन किसानों द्वारा 27 सितंबर को भारत बंद का ऐलान कर दिया था वही पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में इन किसानों ने भाजपा के खिलाफ प्रचार के लिए कमर कस ली है। किसान नेताओं का दावा है कि भले ही उन्हें यह आंदोलन 2024 तक चलाना पड़े लेकिन सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती है तो वह 2024 में किसी भी कीमत पर भाजपा को सत्ता में नहीं आने देंगे। किसान नेता पश्चिमी बंगाल चुनाव में भाजपा को वोट न देने की अपील के साथ कोलकाता पहुंचे थे। भले ही पश्चिमी बंगाल में भाजपा की हार में उनकी अपील का कोई महत्व न रहा हो लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व मध्य प्रदेश तथा राजस्थान जैसे राज्यों में यह किसान आंदोलन चुनाव पर कोई असर नहीं डालेगा यह संभव नहीं है। यह सत्ता की हठधर्मिता ही है कि 10 महीने लंबे आंदोलन को वह दबाने व तोड़ने की जिद में किसानों को आतंकवादी बताने और उन्हें हराने थकाने का हर प्रयास कर चुकी है। लेकिन उनकी मांगों पर विचार को तैयार नहीं है जबकि भाजपा के अंदर भी ऐसे दर्जनों नेता है जो किसानों के आंदोलन को लेकर और सरकार के रवैए से नाराज हैं। प्रधानमंत्री मोदी और यूपी के सीएम योगी जैसे नेता अगर यह माने बैठे हैं कि वह किसानों के लिए जो कर रहे हैं उससे किसान खुश हैं तथा आंदोलन करने वाले बिचौलिए और दलाल हैं तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। 2000 की सम्मान निधि उन्हें किसानों का वोट दिलायेगी यह गलत सोच है। हिंदू मतों के ध्रुवीकरण की राजनीति ने भाजपा को मुस्लिम मतदाताओं से बहुत दूर कर दिया है किसान अगर भाजपा के विरुद्ध हो गए ऐसे में भाजपा को लेने के देने पड़ जाएंगे। अच्छा हो कि वह किसानों का दर्द समय रहते समझ ले। केंद्र सरकार जिन तीन कानूनों को लाई है अगर वह किसानों की नजर में किसान विरोधी है तो फिर इन्हें वापस लेने में उसकी क्या नाक कट जाएगी? यह बात किसी के भी समझ में नहीं आ रही है।

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