प्रदेश में अधिकारियों से बडे है दरोगा व थानेदार, नहीं सुनते किसी की

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  • कैबिनेट मंत्री के फोन को भी किया अनसुना

देहरादून। प्रदेश में पुलिस अधिकारियों से चौकी थाना प्रभारी अपने आपको बडा साबित करने की होड में लगे हैं। वहीं अधिकारी बयानवीर बनकर दावा कर रहे हैं कि फरियादियों को न्याय दिलाया जायेगा।
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद यहां पर उत्तर प्रदेश संर्वग के पुलिस अधिकारी व कर्मचारी उत्तर प्रदेश वापस चले गये। उसका एक कारण यह भी था कि यहां पर उनको हीन भावना से देखा जाने लगा था। इसलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश जाने में ही अपनी भलाई समझी। उनके जाने के बाद यहां पर भर्ती प्रव्रिQया शुरू हुई। जिसके बाद उत्तराखण्ड में अपने प्रदेश के युवाओं को सिपाही, दरोगा बनने का अवसर प्राप्त हुआ। शुरू—शुरू में उनकी कार्यप्रणाली को लोगों ने अनदेखा कर दिया। लेकिन 25 साल के करीब होने के बाद भी उनकी कार्य प्रणाली में कोई बदलाव न आने पर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि यह कैसी पुलिस है। यहां पर सभी अपने आपको एक दूसरे से सुपिरियर साबित करने में लगे रहते है। यही कारण है कि पीडितों को न्याय मिलने में काफी समय लग जाता है या फिर यह कहें कि पीडित अपने आपको अपने हाल में ही ढालकर मन मसोस कर बैठ जाता है। थाने चौकियों की तो बात ही निराली हैै। वहां पर अगर फरियाद लेकर जाओ तो खाली हाथ ही वापस आना पडता है। जबकि उच्च अधिकारी यह कहते नहीं थकते हैं कि उत्तराखण्ड में पीडित को पहले न्याय दिलाना उनकी प्राथमिकता है। लेकिन ऐसा होता दिखायी नहीं देता। हालात यह हैं कि अगर कोई पीडित प्रार्थना पत्र लेकर थाने चौकियों में जाता है तो उनका प्रार्थना पत्र लेने से मना कर दिया जाता है। अभी हाल ही में एक व्यक्ति करनपुर चौकी में गया और उसने अपना प्रार्थना पत्र रिसीव करने के लिए कहा तो चौकी प्रभारी ने साफ इंकार कर दिया। जबकि वहां पर मौजूद एक दरोगा ने चौकी प्रभारी से यहां तक कहा कि प्रार्थना पत्र देने वाला उसका परिचित है लेकिन उसके बावजूद चौकी प्रभारी प्रार्थना पत्र को रिसीव करने से बचता रहा। यही हालात अभी डोईवाला थाने में देखने को मिला। वहांं एक पीडित अपना प्रार्थना पत्र लेकर डोईवाला कोतवाली पहुंचा और उसने वहां पर कोतवाल को बताया कि उसकी भूमि पर कुछ लोग जबरन मंदिर का निर्माण करने जा रहे हैं जिनको रोका जाना चाहिए और उसका मुकदमा दर्ज किया जाये। वहीं एक कैबिनेट मंत्री ने भी डोईवाला कोतवाल को फोन कर मामले में कार्यवाही करने के लिए कहा था लेकिन कोतवाली प्रभारी ने कोई कार्यवाही करना तो दूर उल्टे उसको थाने से चलता किया। यह हालात तब है जबकि यहां पर कोई पेशेवर अपराधी नहीं है अगर ऐसा माहौल होता तो फिर क्या होता यह एक सोचनीय विषय है।

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