प्रेम प्रकरण के पीछे कई सवाल

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प्रदेश सरकार और भाजपा के लिए संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद का प्रकरण अब एक बड़ी मुसीबत का कारण बन चुका है। इस मामले में तो प्रेम की माफी और सफाई का कोई असर विरोध करने वालों पर न होता दिख रहा है और न प्रेम को अब प्रयाश्चित का कोई तरीका सूझ रहा है। उन्होंने सदन में इसके लिए खेद व्यक्त किया और सड़क पर भी माफी मांगी वह मां गंगा की शरण में भी गए प्रयाश्चित किया तथा विरोध करने वालों के भी कल्याण की कामना करते हुए कहा कि अगर वह मुझसे कहे कि हमारे चरणों में लेट कर माफी मांगे तो वह मांगने को तैयार हैं मगर यह मामला अब खत्म होना चाहिए। यही नहीं उन्होंने राज्य आंदोलन के दौरान पुलिस द्वारा उन्हें पीटे जाने की तस्वीर जारी करते हुए इतिहास की याद भी दिलवाई कि उन्होंने भी अलग राज्य बनाने के लिए लड़ाई लड़ी थी वह पहाड़ के लोगों का अपमान भला कैसे कर सकते हैं लेकिन अब उनकी बात को कोई सुनने को तैयार नहीं है। किसी के द्वारा उन्हें थप्पड़ जड़ने की बात कही जा रही है तो कोई उन्हें जूते की मालाएं पहनाने की बात कर रहा है। किसी के द्वारा उनका मुंह काला करने की बात कही जा रही है तो कोई उनके राजनीतिक बहिष्कार की बात करते हुए उन्हें मंत्री पद से हटाने की मांग कर रहा है। लेकिन विरोध करने वालों पर उनकी किसी भी बात का असर होता नहीं दिख रहा है इसे अगर आप चाहे तो राजनीतिक निष्ठुरता भी कह सकते हैं या फिर कुर्ता घसीटन भी कह सकते हैं। प्रारंभिक दौर में सभी के द्वारा प्रेमचंद से माफी मांगने की मांग ही की जा रही थी मुख्यमंत्री ने भी मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्हें माफी मांगने की सलाह दी गई जिसे उन्होंने मान भी लिया लेकिन यह सीएम धामी और खुद प्रेमचंद को भी पता नहीं था कि उनके माफी मांगने के बाद यह मामला और विकराल रूप ले लेगा विरोध करने वालों ने अब इसे राज्य के सम्मान और अपमान से जोड़कर इतना बड़ा कर दिया है कि प्रेमचंद अगर मंत्री पद छोड़ भी दें तब भी यह विवाद खत्म होने वाला नहीं है। क्योंकि अपमान और सम्मान की बात करने वालों के निशाने पर सिर्फ प्रेमचंद नहीं है राज्य की धामी सरकार और भाजपा है। तथा इसके अहम कारक के रूप में 2027 का विधानसभा चुनाव है। भाजपा सरकार और प्रेमचंद अब चाहे कुछ भी कर ले आने वाले विधानसभा चुनाव में मुद्दों की सूची से देसी और पहाड़ी के इस मुद्दे को राज्य के सम्मान की बात को कोई नहीं हटा पाएगा। प्रेमचंद अग्रवाल के जिस बयान को लेकर यह पूरा विवाद खड़ा हुआ है उससे पूर्व सूबे के मंत्री और विधायक कैसी—कैसी अभद्र भाषा का प्रयोग कर चुके हैं तथा सदन से लेकर सड़क तक कैसे—कैसे आचरण और व्यवहार के उदाहरण पेश कर चुके हैं उन्हें लेकर तो कभी इतना बखेड़ा कभी किसी ने खड़ा नहीं किया जितना कि इस समय किया जा रहा है। यह बात यह बताने के लिए काफी है कि इस विवाद के पीछे छिपे निहित कारण प्रेमचंद द्वारा की गई गलती से भी कई गुना ज्यादा बड़े हैं। अन्यथा इतना सब कुछ होने के बाद भी यह मामला बहुत पहले शांत हो चुका होता। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनकी सरकार व भाजपा अब इस राजनीतिक चुनौती का किस तरह से सामना करते हैं या इसका कोई समाधान निकालते हैं इसके लिए अभी थोड़े समय का इंतजार करना होगा लेकिन सूबे की राजनीति किस तरह से अराजकता की ओर बढ़ रही है सदन से लेकर सड़कों तक जो महासंग्राम छिड़ा हुआ है वह अवश्य ही उत्तराखंड के राजनीतिक भविष्य तथा सामाजिक सुरक्षा की दृष्टिकोण से चिंतनीय जरूर है।

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