आज अगर देश की सर्वाेच्च अदालत द्वारा राजनीतिक दलों और सरकारों द्वारा मुक्त की रेवड़ियंा बांटे जाने के चलन पर चिंता जताई जा रही है और यह कहा जा रहा है कि लोग इसलिए काम करना नहीं चाहते हैं कि उन्हें मुफ्त में गैस और अनाज की सुविधा मिल रही है तो यह बेवजह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि इस तरह से हम समाज में एक परजीवी वर्ग तैयार कर रहे हैं जबकि सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं के जरिए गरीबों और सामान्य वर्ग के लोगों को राष्ट्रीय विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन लोगों का वोट लेने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के समय लाडली बहना जैसी डायरेक्ट कैश ट्रांसफर की बेनिफिशियरी योजनाओं की घोषणा की झड़ी लगा दी जाती है। हर वर्ग और क्षेत्र के लिए आज देश में ऐसी दर्जनों योजनाएं चलायी जा रही है। सीधे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान दौर की राजनीति ऐसा आर्थिक उदारीकरण है जो देश को विकास की बजाय विनाश की ओर ले जा रहा है। जितनी आबादी है उससे कहीं अधिक लोग इन मुफ्त की रेवड़ियों का भरपूर आनंद ले रहे हैं। हालांकि जनगणना न होने के कारण अब यह पता नहीं है कि देश की आबादी कितनी है? सिर्फ एक अनुमान भर है कि 140 करोड़ होगी। लेकिन सरकार 80 करोड लोगों को मुफ्त का राशन दे रही है। बात चाहे लाडली बहना की तरह करोड़ों महिलाओं को मुफ्त में कैश ट्रांसफर की हो या किसानों को सम्मान निधि दिए जाने की अथवा आयुष्मान योजना की जिसमें 5 लाख का इलाज तक मुफ्त दिया जा रहा है। वर्तमान में मुफ्त की लाभार्थी योजनाओं के लाभार्थियों को अगर जोड़ दिया जाए तो 280 करोड़ से अधिक हो जाएंगे। एक अन्य महत्वपूर्ण सवाल यह है गरीबों के कल्याण और सामाजिक आर्थिक असमानता को समाप्त करने के लिए चलाई जा रही इन योजनाओं से असल लाभ किसे हो रहा है और इतने प्रयासों के बावजूद भी अगर इसका असंगठित क्षेत्र और गरीब तथा मजदूरों अपनी बदहाली से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहा हैं? आज जब हम डिजिटल इंडिया की बात करते हैं तो इन सरकारी योजनाओं का अनुचित लाभ लेने वालों को क्यों नहीं रोक पा रहे हैं। यदि बात आयुष्मान योजना के लाभार्थियों पर की जाए तो इस योजना से गरीबों को इलाज कम मिल पा रहा है जबकि इस योजना का लाभ उन अस्पतालों को ज्यादा मिल रहा है जो डेढ़ साल पहले इसका खुला विरोध कैग की रिपोर्ट में भी हो रहा है एक ही फोन नंबर और एक ही आधार कार्ड पर लाखों लोगों का इलाज कैसे हो सकता है। खास बात यह है कि तमाम नेताओं के अस्पतालों को इस योजना से संबंद्ध क्यों कर दिया गया है लोकसभा चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ दल प्रचार के दौरान मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने वालों से सतर्क रहने की खूब नसीहते दी गई लेकिन अभी दिल्ली के चुनाव में उनके द्वारा आप और कांग्रेस को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषणाओं में पीछे छोड़ दिया गया। आपने एक कहावत जरूर सुनी होगी ट्टअल्लाह दे जब खाने को कौन जाए कमाने को, यह सही है की सरकार जब आपको बिजली, पानी राशन, घर और आने जाने का किराया तक दे रही हो वह भी मुफ्त में तो फिर काम करने की भी क्या जरूरत है। देश में इस मुफ्त की रेवड़ियों की राजनीति ने एक बड़ा वर्ग ऐसा तैयार कर दिया है जिसे आप परजीवी ही कह सकते हैं। देश के आम आदमी को गरीब रखकर वोट बटोरने की इस राजनीति के चलते क्या हम विकसित भारत का सपना कभी पूरा कर पाएंगे। यह एक विचारणीय सवाल है।