प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान से पूर्व हुई भगदड़ की घटना में कितने लोगों की जान गई तथा कितने लोग घायल हुए और कितने लोग लापता है इसके बारे में अभी तक सरकार की ओर से कोई अधिकृत जानकारी नहीं दी गई है। रात के 12 बजे से 1 बजे के बीच महाकुंभ में हुए इस हादसे के 17 घंटे बाद पुलिस के अधिकारियों द्वारा पत्रकार वार्ता में 30 लोगों के मरने और 60 के घायल होने की पुष्टि जरूर की गई लेकिन इसके बाद कई ऐसे सवाल उठते रहे जिन्हें लेकर शासन—प्रशासन और मीडिया ने भी मौन ही साधे रखा। इसी रात महाकुंभ में कई स्थानों पर भगदड़ की खबरें भी आई और उनके वीडियो भी वायरल हुए लेकिन किसी ने भी कुछ नहीं बताया। इस घटना को लेकर आज भी जो पहले सवाल थे सवाल ही बने हुए हैं। बीते दो दिनों से यह मुद्दा संसद में छाया हुआ है। राज्यसभा में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ने जब हजारों लोगों के मरने और सरकार पर सत्य छुपाने का आरोप लगाया गया तो स्पीकर धनखड़ के साथ उनकी तीखी बहस भी हुई जिस पर खड़गे ने उनसे कहा कि आप भी कुंभ नहा कर आए हैं अगर वह झूठ बोल रहे हैं तो वह खुद ही बता दे कि कितने लोग मरे हैं और कितने लापता हैं। लेकिन स्पीकर के पास भी उनके सवाल का कोई जवाब नहीं था। सपा नेता अखिलेश यादव तो अपना इस्तीफा जेब में लेकर लोकसभा सदन में पहुंचे और उन्होंने पीठ तथा सत्ता पक्ष द्वारा आपत्ति जताने पर स्पीकर को यहां तक कह डाला कि अगर वह यह सिद्ध करें कि उन्होंने सदन में जो कहा है वह सब गलत है तो वह इसी वक्त लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने को तैयार हैं। दरअसल महाकुंभ में हुई भगदड़ के बारे में शासन—प्रशासन द्वारा सत्य को छुपाया तो जरूर गया है भले ही इसका उद्देश्य कुंभ जैसे बड़े आयोजन में किसी तरह का पैनिक पैदा न होना रहा हो या फिर आयोजन को प्रभावित न होने देना हो लेकिन दूसरा सच यह भी है कि इतनी भीड़ के सामने घटित होने वाली किसी घटना का सच छिपा पाना भी वर्तमान डिजिटल युग के दौर में संभव नहीं है। प्रशासन ने जिस तरह पहले भगदड़ होने की घटना से ही इनकार किया गया रात से शाम तक यह भी नहीं बताया गया कि कितने लोग मरे या घायल हुए, पारंपरिक रूप से कुंभ के अखाड़े के शाही स्नान को अगर स्थगित किया गया तो कुछ तो अनहोनी हुई है। यह सभी को पता था कि बहुत दबाव बनने के बाद पुलिस ने भगदड़ में 30 लोगों की मौत की बात स्वीकार की इसके बाद इसमें बढ़ोतरी हुई। अमूमन किसी भी हादसे के बाद यही होता है मृतकों की संख्या बढ़ जाती है। बाद में यह भी हुआ कि भगदड़ कई जगह हुई। लोगों के कपड़े, जूते, चप्पलों और बिखरे सामान से ही नहीं अपितु अपनों की तलाश में भटक रहे लोग इस बात की तस्दीक कर रहे हैं जो कुछ हुआ वह जितना बताया जा रहा है उससे कहीं अधिक बड़ा था। कानून व्यवस्था और इस भव्य आयोजन की सफलता के लिए शासन—प्रशासन जो भी कर रहा है उसे ठीक भी मान लिया जाए तो भी उन परिवारों का क्या जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है और उन्हें उनके अंतिम संस्कार से भी वंचित कर दिया गया क्या यह धर्म आस्था और मानवता पर कलंक नहीं है। नेता भले ही राजनीति कर रहे हो इन मौतों पर लेकिन साधु संत इससे आहत है। पीड़ितों के परिजनों के दुख को सिर्फ वही समझ सकते है।



