वचन पत्र और गारंटी पत्र

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ट्टवह झूठ बोल रहा था इतनी शिद्दत के साथ, मैं एतबार न करता तो और क्या करता’ शायर की यह पंक्तियां हमारे देश की वर्तमान दौर की राजनीति पर एकदम सटीक उतरती है। जब भी कोई चुनाव आता है तो हमारे देश के राजनीतिक दल और नेता आम मतदाताओं को यह भरोसा दिलाने के लिए कि वह सत्ता में आते ही उनके उन तमाम दुःख दर्दों का निवारण कर देंगे जो अब तक कोई नहीं कर सका है। खास बात यह है कि 1970 के दशक में स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के उसे नारे से लेकर या वायदे से लेकर जिसमें ट्टकांग्रेस लाओ गरीबी मिटाओ, का दावा किया गया था से लेकर वर्तमान भाजपा सरकार ट्टअच्छे दिन लाने और विदेशों में काला जमा धन वापस लाने और हर गरीब के खातों में 15—15 लख रुपए डालने, तक सभी वायदे महज चुनावी शगुफे ही साबित हुए हैं लेकिन देश की जनता को बेवकूफ समझने वाले हमारे नेता आज भी लगातार हर बार नये—नये नारे और लोक लुभावन पैकिंग पैक में लपेट कर अपने झूठे वायदों को परोसे जा रहे हैं। हां अब इसका स्वरूप थोड़ा बदल गया है और भाषा श्ौली भी पहले से अधिक परमार्जित हो गई है। यह वचन पत्र और गारंटी पत्र पर कहे जा रहे हैं और सीना ठोक कर कहे जा रहा है कि मोदी की गारंटी की भी गारंटी है। हद तो यह हो चुकी है कि अब सिर्फ लोकसभा और विधानसभा के जैसे बड़े और अहम चुनावाें के लिए ही नहीं अपितु निकाय चुनावों के लिए भी राजनीतिक दलों द्वारा वचन पत्र और गारंटी पत्र जारी किए जाने लगे हैं। उत्तराखंड इसका ताजा उदाहरण है। जब राज्य में पहली बार भाजपा द्वारा संकल्प पत्र जिसे सीएम धामी अपना गारंटी पत्र बताते हैं के बाद अब कांग्रेस ने अपना वचन पत्र जारी किया है जिसमें 26 वायदे किए गए हैं। इन दोनों ही संकल्प पत्रों में मलिन बस्तियों के नियमितीकरण और शहरों की सड़कों तथा सफाई व्यवस्थाओं के लिए बड़ी—बड़ी बातें कही गई है। सवाल यह उठता है कि राज्य में लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार है तथा दून नगर निगम में भी लंबे समय से वह काबिज है। हाई कोर्ट द्वारा जब राजधानी दून से अवैध अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए गए थे तब भाजपा की सरकार द्वारा शपथ पत्र देकर इसके समाधान का भरोसा अदालत को दिलाया गया था लेकिन बीते 3 सालों से सरकार अध्यादेश के बाद फिर नए अध्यादेश लाकर इन मलिन बस्तियों की हिफाजत तो कर रही है लेकिन उनके नियमितीकरण की दिशा में एक कदम भी नहीं बढ़ी है। इन बस्तियों को उजाड़ने से बचाया इसलिए जा रहा है क्योंकि इनमें रहने वाले लाखों वोट हाथ से फिसल सकते हैं। देश में बसपा जैसे कुछ राजनीतिक दल भी है जिन्होंने कभी अपना कोई घोषणा पत्र जारी ही नहीं किया लेकिन कुछ आप जैसे भी राजनीतिक दल तेजी से अस्तित्व में आ गए हैं जिनके द्वारा वोटरों को मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने के चलन को ऐसी हवा दे दी गई है जिसने सभी के वचन पत्रों व घोषणा पत्रों की हवा निकाल दी है। सवाल यह है कि मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा और गैस सिलेंडर से लेकर राशन तक मुफ्त की सुविधा की गारंटी वाली राजनीति देश और समाज को किस मुकाम पर ले जाकर खड़ा करेगी? यह एक चिंतनीय सवाल है।

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