अब सत्ता जाने का डर

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विपक्ष का अस्तित्व खत्म कर देने की सोच के साथ राजनीति करने वाली भाजपा की सरकार और शीर्ष नेताओं ने सोचा भी नहीं होगा कि डराने धमकाने की नीतियों का परिणाम क्या हो सकता है। कहा जाता है कि किसी को भी इतना मत डराओ कि उसके अंदर का डर ही खत्म हो जाए? नेता विपक्ष राहुल गांधी इसका एक उदाहरण है सत्ता में बैठे लोगों द्वारा उन्हें और उनके पूरे परिवार को जिस तरह से नीचा दिखाने और जमानत पर होने की बात कहकर डराया धमकाया जाता रहा है उनकी लोकसभा की सदस्यता समाप्त करने से लेकर उन्हें जेल भेजने का प्रयास किया जाता रहा है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों के बाद विपक्ष जिस अभय मुद्रा की स्थिति में आ चुका है अब उसे लेकर सत्ता में बैठे लोग खुद भयभीत हैं। सत्ता में बैठे लोगों को विपक्ष आज उन्हीं की भाषा में उन्हें हर सवाल का जवाब न सिर्फ दे रहा है बल्कि ऐसे—ऐसे सवाल पूछ रहा है जिनका जवाब देते हुए भी सत्ता पक्ष को नहीं बन पा रहा है। विपक्ष जिन मुद्दों पर अपनी राजनीति के सफर को आगे लेकर जा रहा है उनका कोई तोड़ सत्ता में बैठे नेता तलाश नहीं पा रहे हैं। संविधान और महापुरुषों का सम्मान बढ़ाने की जिस सामाजिक सुरक्षा और समानता की लड़ाई विपक्ष द्वारा योजनाबद्ध तरीके से लड़ी जा रही है उससे सत्ता की बेचैनी उस हद तक बढ़ चुकी है कि उसका जवाब ढूंढ पाना भी मुश्किल हो रहा है। सत्ता पक्ष जिन मुद्दों के आसरे है वह जनता की नजर में बेकार के मुद्दे साबित हो चुके हैं। बात महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर पर की जाने वाली टिप्पणियों की हो या फिर मंदिर—मस्जिदों के विवादों को हवा देने की या फिर महिलाओं पर की जाने वाली अभद्र टिप्पणियों की, भाजपा नेता जो भी कर रहे हैं या कह रहे हैं वह उनकी छवि को और भी अधिक खराब करता चला जा रहा है। केंद्र में एनडीए की जो वर्तमान सरकार है उसका क्या वजूद है और उसका क्या भविष्य है इसे लेकर भाजपा के नेताओं को भी कोई मुगालता नहीं है। यही कारण है की सत्ता अब पूरी बेपरवाही के साथ अपना समय काट रही है। देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल है तथा किन कारणों से यह स्थिति पैदा हुई है। महंगाई और बेरोजगारी की क्या स्थिति है तथा इसका देश के गरीब और मध्यम वर्ग की जनता पर क्या असर पड़ रहा है? देश के समाज में नफरत और अलगाववाद बढ़ाने का क्या कुछ नुकसान हो सकता है? तमाम ऐसे सवाल है जिन्हें लेकर सत्ता के चेहरे पर कोई शिकन दिखाई नहीं देती है। ऐसा लगता है कि सरकार को जैसे चुनाव जीतने की चिंता के सिवाय अन्य कोई चिंता है ही नहीं। हां सत्ता में बैठे नेताओं के मन में इस बात का डर जरूर है कि सत्ता अगर चली गई तो उनका क्या होगा? कहा जाता है की आप जो बोओगे वही आपको काटने को मिलेगा। सत्ता का सुख और सत्ता के बाहर का दुख क्या होता है इसे समझने और समझाने की जरूरत अब शायद किसी को भी नहीं है।

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