वर्तमान दौर की राजनीति की और कोई उपलब्धि हो या ना हो लेकिन उसने देश के समाज में नफरत और असहिष्षुणता का जहर उस हद तक घोल दिया है कि वह राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है। संविधान भले ही सर्व धर्म समभाव और धर्मनिरपेक्ष समाज की पैरोंकारी करता हो तथा देश की सभ्यता और संस्कृति वसुदेव कुटुम्बकम की रही हो लेकिन जाती पाती और धर्म के आधार पर विभेद की जो लकीरें अपने राजनीतिक स्वार्थो के लिए नेताओं तथा राजनीतिक दलों द्वारा खींची जा रही है वह अत्यंत ही चिंतनीय व विघटनकारी है। अभी 4 दिन पूर्व देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा डॉ भीमराव अंबेडकर पर राज्यसभा में आपत्तिजनक टिप्पणी किए जाने का विवाद थमा भी नहीं है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई की जयंती समारोह में लोक गायिका देवी द्वारा रघुपति राघव राजा राम भजन गाए जाने पर भारी बखेड़ा कर दिया गया जिसके बाद उन्हें सार्वजनिक मंच से माफी मंगवाई गई। खास बात यह है कि भाजपा नेताओं ने खुद ही उनसे भजन गाने का अनुरोध किया था और उन्होंने राष्ट्रपिता गांधी का लोकप्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम गाना शुरू किया तथा वह भजन की ईश्वर अल्लाह तेरे नाम वाली लाइन पर पहुंची तो लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया कार्यक्रम में रविशंकर से लेकर अश्वनी चौबे व शाह नवाज हुसैन तक तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी में हुए इस हंगामेंं के बाद भोजपुरी गायिका देवी ने सार्वजनिक मंच से यह कहते हुए माफी मांगी कि अगर इस भजन से किसी की भावनाएं आहत हुई है सॉरी और वह मुंबई वापस लौट गई। यह घटना देश में फैलती नफरत और घृणा तथा आपसी विद्वेश का प्रतीक या उदाहरण भर नहीं है बल्कि भावी समय में होने वाले गृह युद्ध की चेतावनी है। भाजपा के 10 साल के शासनकाल में लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे मुद्दों या गौ रक्षा के नाम पर अथवा हर मस्जिद को खोद कर मंदिर की तलाश करने का जो अभियान चलाया जा रहा है तथा नेहरू, गांधी और डॉ अंबेडकर को अपमानित करने का काम किया जा रहा है उसके परिणामों के नतीजे ही है। इतने समय में भाजपा की नेता अब अपने एजेंडे पर खुलकर सामने आ चुके हैं। बात महात्मा गांधी की हो या फिर डा. अंबेडकर की, ज्योतिबा फुले की हो या शहीद ए आजम भगत सिंह क्या उनका अपमान करने से किसी भी नेता का सम्मान बढ़ सकता है। आजादी के 65 सालों में किसने क्या किया उसका ढोल पीट कर क्या मिलने वाला है बीते 10 सालों से अगर आप सत्ता में है तो जनता आपसे पूछेगी कि आपने इतने सालों में क्या किया है। बीते दिनों यूपी के संभल और उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मस्जिदों को लेकर जो बवाल हुआ उसके पीछे कौन सी सोच काम कर रही है। पटना में बापू के भजन को लेकर जिस तरह का हंगामा खड़ा किया गया वह कौन सी सोच है? सवाल यह है कि देश में सांप्रदायिकता का जहर फैलाकर और नफरत की आग लगाकर क्या तुम खुद भी सुरक्षित रह सकोगे किसी दल और नेता को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके घर भी इसी देश में है। अगर देश में आग लगेगी तो उनका घर भी जलने से नहीं बचेगा। जिस बिहार में यह घटना घटित हुई वहां नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं जो भाजपा के सहयोगी हैं। उन्हें बताना चाहिए कि क्या बापू का भजन गाना भी अपराध है? क्या वह अभी भी भाजपा की सोच का समर्थन करते हैं और अगर नहीं करते हैं तो फिर एनडीए के साथ क्यों नहीं छोड़ देते।





