अर्थव्यवस्था का सच

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आपने इस कहावत को अनेक बार सुना होगा न खाता न बही जो हम कहें वही सही। बीते कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार की 10 साल के कार्यकाल को देश में अब तक बनी तमाम गैर भाजपा सरकारों से बेहतरीन बताते हुए चुनौती भरे अंदाज में कहा है कि लेखा पटृी का काम करने वाले चाहे तो उनके काम की समीक्षा कांग्रेस, कम्युनिस्ट और परिवार वादियों तथा मिली जुली सरकारों के कामकाज के निर्धारित पैरामीटर को सामने रखकर कर सकते हैं शायद प्रधानमंत्री को यह आभास नहीं रहा होगा कि आज के इस डिजिटल युग में हर किसी को कोई भी जानकारी सहज उपलब्ध है अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी बात पर हर कोई वैसा ही भरोसा कर लेता जैसे अच्छे दिनों के वादों पर कर लिया था। या काला धन वापस लाने और गरीबों के खातों में 15—15 लाख डालने में किया गया था। आज वर्तमान समय में देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार की जो स्थिति है वह 658 मिलियन डॉलर है तथा विदेशी कर्ज 686 मिलियन डॉलर है। जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद जिसके आधार पर सरकार अपना बजट बनती है, से भी अधिक है। देश के इसी आर्थिक हालात को देखकर विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने भारत की अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी बताया है। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में विदेशी कर्ज में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है आरबीआई द्वारा सरकार को बार—बार चेतावनियां देने की कोशिश की जाती रही हैं जिन्हें नजर अंदाज किया जा रहा है। प्रधानमंत्री बनने से पूर्व जब डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 64 के आसपास थी तब वह इसे राष्ट्रीय असम्मान का प्रतीक बताकर मनमोहन सरकार की आलोचना करते थे लेकिन आज डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 85.20 हो गई है तो उन्हें रुपए की कीमत का अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरना अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि नजर आ रहा है तथा जवाब देही से बचने के लिए विश्व के कुछ राष्ट्रों के बीच सीधे युद्ध व आर्थिक मंदी का हवाला देकर बचाव का रास्ता ढूंढा जा रहा है। भाजपा की जब 2014 में सरकार बनी थी तब देश के किसानो पर 13 लाख करोड़ के आसपास बैंक कर्ज था जो अब 50 लाख करोड़ से अधिक हो गया है। 2022 तक किसानों की आय दो गुना हो जानी चाहिए थी लेकिन आज देश का हर किसान 75000 के कर्ज में है आज देश के किसानों की औसत मासिक आय 12 से 18 हजार रुपए पर अटकी हुई है जबकि विश्व के किसानों की आय 94 हजार रुपए है। नोटबंदी के बाद देश के एमएसएमई सेक्टर का धराशाई होना और देश में अरबपतियों की संख्या का बढ़ना इस बात को दर्शाता है कि कॉर्पाेरेट के हाथों में देश के संसाधन और संपदा को खुले हाथों से दिया जा रहा है। देश में बेरोजगारी की स्थिति सारी सीमाओं को पार कर चुकी है 2 करोड़ सालाना रोजगार देने की जो बात कही गई थी वह अब शगुफा साबित हो चुकी है किंतु इसके बाद भी प्रधानमंत्री इस बात की चुनौती दे रहे हैं कि उनके कार्यकाल में विकास का नया इतिहास लिखा गया है 25 करोड़ लोगों को गरीबों की रेखा से बाहर लाया गया है। जिस देश के 80 करोड लोग सरकारी 5 किलो राशन पर आश्रित होकर रह गए हो और नौकरियों (सार्वजनिक क्षेत्र) 6.5 फीसदी की कमी आ गई हो किसान कर्ज में डूबे हो और रुपया रसातल में जा पहुंचा हो फिर इतना बड़ा झूठ किसके लिए। शायद सच को देखना भी सत्ता के वश की बात नहीं है। लेकिन सच को कोई भी बदल तो नहीं सकता है। देश के आम आदमी किसान मजदूर और असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों का हाल क्या है? यह अब किसी से छुपा नहीं है न ही अब वह किसी तरह से छुपाया जा सकता है।

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