संविधान बनाम मनुस्मृति

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अपनी बात को आज देश के ताजा राजनीतिक हालात से शुरू करने की बजाय 2014 के लोकसभा चुनाव के उन नारों से किया जाना शायद ज्यादा बेहतर या उपयुक्त होगा जिन्हें सत्ता में आने के बाद भाजपा के नेताओं द्वारा खुद ही चुनावी शगूफे बता कर खारिज कर दिया गया था। अच्छे दिन आने के सुनहरे सपने व स्विस बैंकों में जमा काला धन वापस लाने और हर गरीब के खाते में 15—15 लाख डालकर उसे अमीर बनाने की बातें देश के हर आम आदमी को इसलिए याद होगी क्योंकि उसने आंख मूंद कर भाजपा नेताओं पर भरोसा करते हुए एक नहीं दो—दो बार सत्ता में बने रहने का मौका दिया है। दो करोड़ युवाओं को हर साल रोजगार देने का वादा करने वालों ने देश को जिस बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार और लूटपाट के दलदल में फंसा दिया है तथा देश भर में लव जिहाद और लैंड जिहाद के नाम पर नफरत और हर एक मस्जिद को खोद कर उसके नीचे मंदिर के अवशेष तलाशने की कोशिशें को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झौंकने का काम किया जा रहा है उस पूरे खेल से अब पर्दा उठ चुका है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देश के आम जनमानस ने भाजपा का 400 पार का खेल क्या खराब किया उसकी बौखलाहट और झुंझलाहट अब सत्ता पक्ष के व्यवहार में स्पष्ट परिलक्षित होने लगी है। संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर लामबंद होता विपक्ष जो अब न तो झुकने को तैयार है न रुकने को सरकार की चूल्हेें हिला चुका है। जबकि सत्ता पर लोग किसी भी सूरत में सत्ता को खोना नहीं चाहते है, के बीच जारी संघर्ष अब डा. भीमराव अंबेडकर और वीर सावरकर से होता हुआ संविधान बनाम मनुस्मृति तक जा पहुंचा है। कुछ लोग भले ही गृहमंत्री शाह के डॉ आंबेडकर पर दिए उस बयान पर हैरान हो जिसे लेकर पूरे देश में भारी जनाक्रोश देखा जा रहा है लेकिन उनका यह बयान किसी भूल चूक का परिणाम नहीं है अगर ऐसा होता तो अब तक इसे संसदीय कार्यवाही से हटा दिया गया होता। यह भाजपा नेताओं की सोची समझी रणनीति है। इस देश का विधान संविधान से चलेगा या फिर मनुस्मृति के विधान से इस पर भाजपा नेता अब जल्द से जल्द फैसले पर पहुंचना चाहते हैं। क्योंकि उन्हें इस बात के स्पष्ट संकेत मिल चुके हैं कि उनके हाथ से सत्ता कभी भी फिसल सकती है। जिनकी बैसाखियों पर सरकार का भविष्य टिका है वह कभी भी पलटी मार सकते हैं। केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के बाद भी चुनावी नियमावली में जो संशोधन किया है और यह व्यवस्था की है कि अब कोई भी पिटीशवर वोटिंग से संबंधित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य नहीं मांगेगा तथा उसे कोई साक्ष्य नहीं दिया जाएगा तथा ऐसे करने वाला राजद्रोह की श्रेणी में होगा इस बात का प्रमाण है कि सत्ता पक्ष अब खुल्लम खुल्ला तानाशाही पर आमादा हो चुका है जो खेल अब तक पर्दे के पीछे चल रहा था अब खुलेआम चलेगा। यह इस बात का प्रमाण है की राजनीति अब संवैधानिक नियम कानून से नहीं चलेगी। संसद के प्रवेश द्वार पर हुआ संघर्ष तो इसकी एक बानगी भर है सवाल यह है कि संविधान की यह लड़ाई अब आर पार के मुहाने पर आ गई है इसकी परिणीति क्या होगी अलग बात है लेकिन यह देश, समाज और अर्थव्यवस्था किसी के लिए भी हितकर नहीं होगा।

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