राजनीति में कई बार एक छोटी सी गलती या चूक बहुत भारी पड़ जाती है समस्या उस समय और भी अधिक गंभीर हो जाती है जब गलती को दरकिनार करने के लिए अनुपयुक्त उपायों का सहारा लिया जाता है गृहमंत्री अमित शाह द्वारा राज्य सभा में डा. अंबेडकर को लेकर जो बयान दिया गया था वह निसंदेह उनकी एक बड़ी गलती थी खास बात यह है कि भाजपा के नेता इस सच को जानते हुए भी शाह के समर्थन या बचाव में खड़े हैं। संसद भवन के प्रवेश द्वार पर भाजपा और कांग्रेस के सांसदों के बीच जो धक्का मुक्की और कुर्ता घसीटन हुई तथा जो मामला पुलिस और न्यायालय तक जा पहुंचा इसका उद्देश्य मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाना है तो यह और भी अधिक शर्मनाक व निंदनीय है। क्योंकि आरोप लगाना मुश्किल नहीं होता है आरोपो को सत्य साबित करने के लिए साक्ष्य जरूरी होते हैं। यही कारण है कि शायद राहुल गांधी के खिलाफ की गई एफआईआर में अब हत्या का प्रयास या जानलेवा हमला करने जैसी धाराओं को हटा दिया गया है। सत्ता पक्ष द्वारा अब तक ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किए गए हैं जो राहुल गांधी पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि करते हो। सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा मानहानि केस मामले में राहुल गांधी को यह नसीहत दी जाती थी कि अगर वह माफी मांग लेते तो उन्हें न सजा होती और न उनकी संसद की सदस्यता जाती लेकिन आज कोई भी भाजपा नेता अमित शाह को यह सलाह नहीं दे रहा है कि वह अपने बयान के लिए माफी मांग लेते तो यह संकट पहले ही समाप्त हो जाता। लेकिन बात अब बहुत आगे निकल चुकी है उनके माफी मांगने या इस्तीफे से भी भाजपा का कुछ भला होने वाला नहीं है। डा. अंबेडकर को अपना भगवान मानने वाले देश के दलित, पिछड़े और ओबीसी मतदाता ही नहीं वह महिलाएं जिन्हें आधी आबादी कहा जाता है जिन्हें मतदान का अधिकार अगर मिल सका तो डा. अंबेडकर के कारण ही मिल सका था सभी अमित शाह के बयान से भारी नाराज हैं। यही नहीं दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू तक को खत लिखकर कहा कि अब तो फैसला कर लो कि आप डा. अंबेडकर के साथ है या संघ के साथ है। बिहार में जिस 13 फीसदी दलित व किसानों के दम पर नीतीश सत्ता पर काबिज हैं तथा आंध्र प्रदेश 17 फीसदी कोर वोटर चंद्रबाबू नायडू की सबसे बड़ी ताकत है वह इसी वर्ग का है ऐसे में अमित शाह का एक बयान भाजपा और केंद्र सरकार को कहां—कहां और कितना डैमेज करेगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस इस मुद्दे पर कतई भी चुप बैठने वाली नहीं है। उसका देशव्यापी आंदोलन इसे लेकर लगातार जारी रहेगा। सच यह है कि भाजपा के नेता न तो सच को स्वीकार करने को तैयार है और न संघ प्रमुख कि उस नसीहत को मानने को तैयार है जिसमें वह सभी का सम्मान करने और साथ लेकर चलने को कह रहे हैं। शायद यह सत्ता का सरूर ही है कि जेपी नड्डा कह देते हैं कि अब भाजपा को संघ के सहयोग की कोई जरूरत नहीं है। भाजपा के नेताओं को शायद अब यह भी याद नहीं रह गया होगा कि पार्टी की उत्पत्ति संघ के ही गर्भ से हुई है और बीजेपी कभी संघ से अधिक ताकतवर नहीं हो सकती है। भारत के राजनीतिक इतिहास का यह नया दौर है। जहां कोई किसी की न सुनता है न मानता हैं।





