भले ही आजादी के बाद देश के नेताओं ने संविधान के जरिए भारत को सर्वधर्म सम्भाव वाले राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ाने की परिकल्पना की हो और इसकी प्रस्तावना में हम भारत के लोग तथा धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्दों का सहारा लिया गया हो लेकिन राजनीतिक दल और नेताओं की कथनी और करनी के फर्क ने ऐसा कभी नहीं होने दिया। धर्म और वर्ग तथा वर्ग और वर्गों को वोट की राजनीति से जोड़ने का काम इतनी खूबसूरती से किया जाता रहा कि हम कब मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों से होते हुए बटोगे तो कटोगे तक पहुंच गए पता ही नहीं चला। जातियों और संप्रदायों के विभाजन के साथ—साथ देश के नागरिकों के बंटवारे के तमाम पैमाने हमारे नेताओं ने इतनी खूबसूरती से तैयार किए गए कि आप विभाजन के इस मकड़जाल से निकल पाना आसान ही नहीं असंभव हो चुका है। खास बात यह है कि आम आदमी के जहन में एक दूसरे के खिलाफ नफरत का ऐसा जहर घोला जा रहा है जिससे खून खराबे के सिवाय और कुछ हो नहीं सकता है। अभी बीते दिनों देश में हमने सर तन से जुदा के सिर्फ नारे ही नहीं सुने बल्कि ऐसी अनेक घटनाओं को घटित होते हुए भी देखा था। जब देश आजाद हुआ था उस समय देश के नेताओं का चिंतन इस बात पर केंद्रित था कि देश से अछूत की बीमारी को समाप्त किया जाए। ठाकुर का कुआं सिर्फ ठाकुर का कुआं न हो हो हर धर्म और जाति के लोग उस कुएं का पानी पीने के हकदार हो। मंदिर मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों को जाने का और पूजा पाठ करने का अधिकार प्राप्त हो। लेकिन आज हालात बिल्कुल बदल चुके है। नाई की दुकान तक अलग—अलग संप्रदायों की दुकान हो चुकी है और दुकान तथा मकान पर पहचान के नाम के बोर्ड लगाने की बातें हो रही है। पिछड़ी जातियों के लोगों को मंदिर, मस्जिदों पर जाने पर रोक लगाई जा रही है। अभी बीते दिनों लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जब नफरत के इस बाजार में एक मोहब्बत की दुकान खोलने की बात की गई तो हमने देखा कि तमाम नेताओं ने उनका खूब मजाक उड़ाया था लेकिन देश की जनता को उनकी यह बात जरूर अपील करती देखी। अभी मथुरा में संघ की एक महत्वपूर्ण बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ भी समाज में नफरत नहीं चाहता है हम इसके खिलाफ है। लेकिन मोहब्बत की बात करने वाले उनसे कभी मिलते भी नहीं है। अगर संघ प्रमुख वास्तव में देश में एक ऐसा समाज चाहते हैं कि जहां किसी तरह का सामाजिक विभाजन न हो तो उन्हें उन भाजपा नेताओं से जरूर यह पूछना चाहिए कि वह क्यों चुनावी सभाओं में हिंदू मुस्लिम की बात करते रहते है?ं क्यों उनके द्वारा बटोगे तो कटोगे जैसे नारे देकर लोगों को डराया जा रहा है। महाराष्ट्र में चुनाव हो रहा है और मुंबई बटोगे तो कटोगे के नारों से पटा हुआ है। सवाल यह है कि कौन बांट रहा है और कौन किसे काट रहा है? जिस देश के लोगों ने अपनी सामाजिक एकता के बल पर अंग्रेजों को देश से खदेड़ा हो जिस देश को अपनी बहु आयामी संस्कृति अनेकता में एकता के लिए जाना जाता हो उस देश के समाज को और देश के भविष्य को हमारे आज के नेता कहां लेकर जा रहे हैं भले ही उसे वह समझे या न समझे लेकिन देश के आम आदमी को उनकी नियत को समझने की जरूरत है। सत्ता के लिए समाज को बांटने और काटने का यह खेल देश व समाज के लिए अत्यंत ही घातक है।