अभी 4 दिन पहले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कुछ सामाजिक संगठनों और प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा सांप्रदायिक सौहार्द तथा आपसी भाईचारे का जन जागरण करते हुए सद्भाव के गीत गाए थे तथा हाथों में ट्टमजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, और हिंदू—मुस्लिम—सिख—इसाई आपस में सब भाई—भाई जैसे स्लोगन लिखी तख्तियां लेकर पैदल मार्च निकाला गया था। सवाल यह है कि क्या सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति या समुदाय की है? या फिर क्या कोई एक समुदाय चाह कर भी ऐसा कर पाएगा कि आपसी भाईचारा बना रह सके। सही मायने में यह सभी समुदायों और हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी से ही संभव है। अभी देहरादून में एक होटल में तंदूरी रोटी बनाने वाले व्यक्ति का रोटियां पर थूकने का वीडियो सामने आया था इसके बाद मसूरी में एक पर्यटक द्वारा एक चाय की दुकान का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला गया जिसमें दुकानदार थूक वाली चाय लोगों को पिलाता दिख रहा है। अगर इस तरह की हरकतें किसी भी समुदाय के लोगों द्वारा की जा रही है तो क्या कोई समाज इस तरह की हरकतों को नजर अंदाज कर सकता है। भले ही पुलिस ने इस तरह के कृत्य करने वालों को गिरफ्तार कर लिया है लेकिन इस तरह की और विकृत मानसिकता रखने वाले लोग जिस तरह समाज में रहते हो वहंा किसी भी तरह के सामाजिक सौहार्द की अपेक्षा की जा सकती है? अभी हमने कावड़ मेले के दौरान देखा था कि उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार ने कावड़ मार्गों पर सभी दुकानदारों को नाम लिखे बोर्ड लगाने का आदेश दिया था जिस पर काफी राजनीति भी होती देखी गई। दुकानदारों को अपनी पहचान उजागर करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए लेकिन इसका इतना विरोध हुआ कि मामला अदालत तक पहुंच गया। उल्लेखनीय यह भी है कि इस दौरान धर्म हुआ जाति छुपा कर व्यापार करने वाले कई दुकानदार भी पाए गए। सवाल यह है कि अगर आप कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं तो फिर आपको अपने बारे में कुछ भी छुपाने की जरूरत भी क्या है। अनेक बार यह सवाल लोगों द्वारा उठाया जाता है कि धर्म और जाति के नाम पर सांप्रदायिक माहौल करने का काम कुछ लोगों द्वारा किया जा रहा है, जो गलत है। एक सीधी और सपाट बात यह है कि जो लोग समाज में नफरत का जहर घोलने का काम कर रहे हैं या करवा रहे हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म और संप्रदाय के हो। कई मामले तो महिलाओं से छेड़छाड़ और दुष्कर्म के भी सामने आ चुके हैं। जिन्हें किसी भी स्थिति में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है लेकिन समाज में नफरत का जहर चाहे वह हीट स्पीच और राष्ट्र विरोधी नारे लगाने जैसा कृत्य हो या खाने पीने की वस्तुओं को अपवित्र करने का ऐसे लोगों पर लगाम लगाया जाना जरूरी है जो हमारे समाज को दूषित करने का काम कर रहे हैं। अगर एक समुदाय दूसरे समुदाय के साथ ऐसा करेगा जो गलत है तो दूसरे समुदाय की प्रतिक्रिया भी वैसी ही होगी यह स्वाभाविक है।