देवभूमि उत्तराखंड में जिस तरह से अपराधों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है वह निसंदेह चिंता का विषय है। खास तौर से हत्या, लूट और डकैतियों की वारदातों के साथ महिला अपराधों की घटनाओं की बाढ़ जैसी आई हुई है वह कानून व्यवस्था पर एक बड़ा सवालिया निशान है। लड़कियों और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ से लेकर उनके साथ गैंगरेप और हत्याओं की वारदातों को लेकर आम जनमानस में गुस्सा तो बढ़ ही रहा है इसके साथ ही समाज में असुरक्षा का माहौल बनता जा रहा है। सबसे अधिक दुखद पहलू यह है कि बीते कुछ समय में इन महिला अपराधों में सत्ताधारी दल भाजपा के नेताओं की संलिप्तता सामने आने से लोगों के मन में यह सवाल भी है कि जब नेता खुद इस तरह के अपराधों को अंजाम देंगे जिन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त होगा तो लोग किससे इंसाफ की उम्मीद कर सकते हैं। अंकिता भंडारी हत्याकांड से लेकर अभी हाल ही में अल्मोड़ा के सल्ट क्षेत्र में एक नाबालिक लड़की से दुष्कर्म के मामले में भाजपा के मंडल अध्यक्ष का नाम सामने आया है इससे पूर्व हरिद्वार के बहादराबाद क्षेत्र में एक नाबालिक से दुष्कर्म व हत्या मामले में ओबीसी आयोग के सदस्य का नाम सामने आया था। उधर बीते कल ही एक महिला द्वारा नैनीताल के लाल कुआं में एक महिला ने दुग्ध संघ के अध्यक्ष भाजपा नेता पर नौकरी पक्की कराने के नाम पर दुष्कर्म करने का मुकदमा दर्ज कराया गया है। भले ही मुख्यमंत्री धामी ने कल गोपेश्वर के नंदा नगर (घाट) में युवती से हुई छेड़छाड़ के मामले में यह कहां हो कि बेटियों के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी लेकिन उनकी सरकार पर विपक्ष यह कहते हुए आरोप लगा रहा है कि इस तरह की वारदातों को अंजाम देने वालों को भाजपा का संरक्षण मिल रहा है। रुद्रपुर में महिला नर्स से दुष्कर्म व हत्या तथा आईएसबीटी पर लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं यह बताने के लिए काफी है कि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही है। अभी बीते साल नवंबर में दिनदहाड़े दून के राजपुर रोड पर ज्वेलरी शॉप में हुई डकैती की तर्ज पर एक दिन पहले हरिद्वार में एक ज्वेलरी के शोरूम में दिनदहाड़े जिस तरह से बदमाश 5 करोड़ के जेवर लूटकर भागने में सफल हो गए वह पुलिस प्रशासन की उसे चौकसी की पोल खोलता है जिसमें सुरक्षा के बड़े—बड़े दावे किए जाते हैं। हरिद्वार सांसद और पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत का कहना है कि यह पुलिस प्रशासन की बड़ी नाकामी है उनका तो यहां तक कहना है कि पुलिस को जहां होना चाहिए वह वहां नहीं होती है तथा पुलिस दूसरे कामों में लगी रहती है। वह दूसरे काम क्या है यह तो वही जाने लेकिन जिस पुलिस—प्रशासन के भरोसे लोग अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रहने चाहिए वह पुलिस—प्रशासन इस जनता के भरोसे पर खरा नहीं उतर पा रहा है तथा कानून व्यवस्था का मुद्दा उत्तराखंड के लिए दिनों दिन एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। शासन के लिए अब यह एक गंभीर व चिंतनीय विषय है।