वर्तमान लोकसभा चुनाव के दौरान देश की संवैधानिक और स्वायत्तधारी संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा लगाया जाना भले ही कोई नई बात न सही लेकिन इसे लेकर अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ बांग्लादेश जैसे देशों से इस मुद्दे पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही है वह अत्यंत ही चिंताजनक और सोचनीय बात है। बात चाहे मुख्यमंत्री की गिरफ्तारियाें की हो या फिर ईडी और सीबीआई द्वारा की जाने वाली छापेमारियों की अथवा आयकर विभाग की उस कार्यवाही की जिसके तहत कांग्रेस के खातों से 135 करोड रुपए जप्त किए गए हैं और उसे 3567 करोड़ की बकाया वसूली के नोटिस थमाये जाने की अथवा निर्वाचन आयोग में आयुक्तों की नियुक्तियों पर उठने वाले सवालों की। जिन्हें लेकर देश के लोकतंत्र और उसकी व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाये जा रहे हैं। यह मामूली बात नहीं है क्योंकि इस देश को विश्व के सबसे पुराने और मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश के रूप में जाना जाता है। देश की सरकार और विपक्षी दलों के नेताओं को इस बात पर गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है कि आखिर यह नौबत आई तो आई क्यों? अगर सत्ता में बैठे लोग इन संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं तो उन्हें अपना रवैया बदलने की जरूरत है। जिससें देश के लोकतंत्र की छवि को खराब होने से बचाया जा सके। आज देश के राजनीतिक हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि सरकार के हर छोटे—बड़े फैसले को लेकर विपक्ष सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ रहा है। हास्यापद बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी अब तक तमाम फैसलों को गलत और असंवैधानिक ठहराया जा रहा है। एक दिन पहले कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली के दौरान कहा था कि अगर आयकर विभाग को कांग्रेस से बकाया की वसूली ही करनी थी तो वह इस चुनाव से 6 माह पहले या 6 माह बाद भी कर सकती थी। अगर विपक्ष के नेताओं ने कुछ घोटाले किए हैं तो उनकी गिरफ्तारी पहले क्यों नहीं की गई चुनाव के दौरान ही क्यों यह सब किया जा रहा है। नेताओं को जेल में डालकर या फिर कांग्रेस के खिलाफ 10—15 साल पहले के किसी कर बकाया को लेकर उसके बैंक खाते सीज किये जा रहे हैं तो इसकी क्या मंशा है विपक्ष चुनाव ही न लड़ सके। विपक्ष के पास बहुत सारे उदाहरण है कि सत्ता पक्ष में बैठे नेताओं पर अनेक भ्रष्टाचार के मामले हैं लेकिन उनके खिलाफ न ईडी न सीबीआई न आईडी और न चुनाव आयोग कोई कार्यवाही करना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद अब आयकर द्वारा कांग्रेस से 3500 करोड़ से अधिक की वसूली को फिलहाल रोक दिया गया है। सवाल यह है कि आयकर विभाग की इस कार्यवाही के कारण ही कांग्रेस को एक मुद्दा क्यों दिया गया कि वह आयकर विभाग पर सरकार के इशारे पर इस मंशा से काम करने का कि कांग्रेस चुनाव ही न लड़ सके। आज के डिजिटल दौर में आप किसी सूचना को नहीं छुपा सकते हैं न प्रचारित प्रसारित होने से रोक सकते हैं। कोई भी सरकार और संवैधानिक संस्था क्या कर रही है और क्यों कर रही है इसके सच को अब कोई छुपा नहीं सकता। इस दौर की राजनीति में जो हो रहा है उसका सच पूरा देश ही नहीं विश्व भी जान समझ रहा है। अच्छा हो कि देश के नेता इस महान देश के लोकतंत्र का अब और तमाशा न बनाएं।