नेताओं को पहाड़ से अलगाव क्यों?

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यूं तो इस चुनावी दौर में हर नेता की हर एक बात एक चुनावी मुद्दा ही कहीं जा सकती है। लेकिन गैरसैंण राजधानी कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे लेकर भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बीच कोई वाद विवाद हो, राज्य गठन से लेकर अब तक इस मुद्दे पर सिर्फ चुनावी राजनीति ही हावी रही है। उत्तराखंड सरकार द्वारा अपना आगामी बजट सत्र जो 26 फरवरी से दून में आयोजित किया जा रहा है उसे लेकर अब भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच विवाद जारी है। अभी भाजपा के कुछ विधायकों द्वारा शीतकालीन समस्या का हवाला देते हुए एक पत्र स्पीकर ऋतु खंडूरी को लिखा गया था जिसमें बजट सत्र का आयोजन देहरादून में कराने की अपील की गई थी। धामी सरकार ने इस अपील को सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि जिन विधायकों और नेताओं को गैरसैंण में सर्दी लगती है उन्हें उत्तराखंड छोड़ कर चले जाना चाहिए। निसंदेह यह एक कड़वा सच है कि राज्य गठन के बाद से सूबे के नेताओं का पहाड़ से अलगाव बढ़ा है और वह अब पहाड़ की राजधानी पहाड़ में ही होने की हिमायत करने वाले यह नेता गर्मी में भी पहाड़ (गैरसैंण) पर जाने से कतराते दिख रहे हैं। इन विधायकों द्वारा पत्र लिखकर यह अपील करना कि बजट सत्र का आयोजन देहरादून में ही कराया जाए इसका एक उदाहरण है। इन नेताओं की आराम तलबी का आलम यह है कि वह गैरसैंण तक आने जाने की जहमत तक उठाने से बच रहे हैं। इन दिनों मौसम भी इतना खराब नहीं है कि गैरसैंण में बजट सत्र का आयोजन न कराया जा सके। भाजपा विधायकों को अगर पहाड़ से इतना ही अलगाव हो चुका है तो उन्हें गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने की भी क्या जरूरत थी। लेकिन पहाड़ की इस राजनीति में गैरसैंण राजधानी को भी एक मुद्दा बनाए रखना जरूरी है। अब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने एक बड़ा बयान दिया है कि वह 27 फरवरी से गैरसैंण में एक सांकेतिक विधान सभा सत्र का आयोजन करेंगे जिसमें आम जनता के साथ राज्य में बेरोजगारी, महिला सुरक्षा व कानून व्यवस्था जैसे तमाम राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कांग्रेस का यह चुनाव प्रचार का तरीका भले ही नया हो लेकिन है बड़ा ही नायाब। कांग्रेसी नेता इस सांकेतिक या छ्दम सत्र के जरिए जनता के सामने अपनी बात रखेंगे। यह देखना होगा कि इस सत्र में जन उपस्थित कितनी रहती है लेकिन तरीका बहुत ही बेहतरीन है। यह कारण है कि अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भटृ का कहना है कि इस तरह से छ्दम सत्र का आयोजन कर कांग्रेस लोकतंत्र का अपमान कर रही है। कांग्रेस के प्रतीकात्मक सत्र के आयोजन से लोकतंत्र का क्या अपमान होगा या इसमें ऐसी क्या बात है कि इसे लोकतंत्र का वह अपमान बता रहे हैं इसे बीजेपी अध्यक्ष ही बेहतर समझ सकते हैं। हमें तो सिर्फ इतना समझ आ रहा है कि गैरसैंण के नाम पर बीते दो दशकों से राजनीति करने वाले इन नेताओं का पहाड़ और राजधानी गैरसैंण से कुछ लेना देना नहीं रह गया है। वह खुद पहाड़ के प्रति अलगाव के शिकार हो चुके हैं और उन्हें अब दून ही सबसे ज्यादा भाता है।

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