नये भारत की नई राजनीति

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आपने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेताओं से यह सुना होगा कि यह नए दौर का नया भारत है। अगर देश के सामाजिक और राजनीतिक एवं आर्थिक हालातो पर आप गौर करें तो आप भी यह जरूर मान लेंगे की वास्तव में यह नए दौर का नया भारत ही है क्योंकि इस भारत में इन दिनों बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो इससे पहले शायद कभी नहीं हुआ है। अगर ताजा घटना कर्मों से ही हम अपनी बात शुरू करें तो आयकर विभाग द्वारा बीते कल कांग्रेस के बैंक खातों को प्रQीज करने की घटना को ही ले तो ऐसा देश के इतिहास में पहली बार ही हुआ है जब किसी राजनीतिक पार्टी के बैंक खाते रिकवरी को लेकर फ्रिज किए गए हो। कल हरियाणा और पंजाब के शंभू बॉर्डर का नजारा अगर देश के लोगों ने देखा होगा जहां दिल्ली कूच करने वाले किसानों पर आसमान और जमीन से आंसू गैस गोले बरसाए गए वैसा युद्ध के मैदान जैसे हालात भी शायद पहले देश के लोगों ने कभी नहीं देखे होंगे। अगर थोड़ा सा पीछे लौटकर जाए तो देश के नए संसद भवन में जिस तरह से दो युवकों द्वारा दर्शक दीर्घा से कूद कर लोकसभा सदन को धुंआ—धुंआ कर दिया गया वैसा भी शायद इससे पहले कभी नहीं हुआ होगा। मोदी शब्द को लेकर राहुल गांधी पर मानहानि के मुकदमे में उन्हें अदालत द्वारा सजा सुनाने और लोकसभा से तुरत फुरत उनकी सदस्यता समाप्त किए जाने तथा उनसे सरकारी आवास खाली कराने जैसी घटना भी शायद देश के लोगों ने पहले कभी नहीं देखी होगी। अभी सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में हुई धांधली को लेकर उसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया गया। यह भी शायद नए भारत के इतिहास की एक ऐतिहासिक घटना ही थी जब देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा इससे पूर्व लोकतंत्र पर ऐसी टिप्पणी की गई हो। एक नहीं ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो इस देश में पहले कभी नहीं देखी गई। भारत के संसदीय इतिहास में किसी मुद्दे को लेकर विपक्ष के 143 सांसदों को निलंबित किया जाने और राज्यों की सत्ता और जनादेश का चीर हरण की तमाम घटनाएं ऐसी है जिनका उल्लेख करना भी मुश्किल सवाल है। बीते कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान में कहा है कि जनता ही उनका सुरक्षा कवच है। सवाल यह है क्या देश की राजनीति में कोई युद्ध हो रहा है कवच की जरूरत अगर प्रधानमंत्री को है तो इस सच को स्वीकार करने में भी कोई बुराई नहीं है कि देश की राजनीति वास्तव में अब राजनीति नहीं रह गई है। युद्ध के मैदान में तब्दील हो चुकी है। जिसमें एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा खड़ी है जिसके साथ उसके अनुसांगिक संगठनों के अलावा कांग्रेस सहित अन्य दलों के तमाम वह छत्रप दल है जिन्हें जेल जाने का डर है और वह तमाम दल जिन्हें हार का भय है भाग कर उनकी शरण में जा रहे हैं दूसरी तरफ अकेले राहुल गांधी और उनके व्योवृद्ध सारथी मल्लिकार्जुन खड़गे हैं कांग्रेस भी जानती है और राहुल गांधी तथा खड़गे भी जानते हैं तथा भाजपा भी अच्छी तरह से जानती है कि कांग्रेस की सांगठनिक ताकत अब इतनी नहीं बची है कि मोदी और भाजपा का मुकाबला कर सके। लेकिन देश की जनता और लोकतंत्र के पास अभी भी इतनी ताकत है कि वह उस भाजपा को भी हरा सकती है जो अबकी बार 400 पार का नारा दे रही है और विपक्ष को दर्शक दीर्घा में बैठाने की बात कह रही है। राहुल गांधी की सामाजिक न्याय यात्रा जिसके माध्यम से राहुल गांधी जनता की अदालत का दरवाजा खटखटा रहे हैं वह भाजपा पर भारी न पड़ जाए? यह सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अब परेशान जरूर कर रहा है अन्यथा वह भी जनता को अपना रक्षा कवच नहीं बता रहे होते। अब देखना यह होगा कि इस बदलते भारत की नई राजनीति में जनता किसका रक्षा कवच बनती है।

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