किसान फिर दिल्ली की ओर?

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देश का किसान एक बार फिर अपनी समस्याओं को लेकर पैदल दिल्ली की ओर चल पड़े हैं। कुछ सत्ता की हिमायती नेताओं और मीडिया को लगता है कि जब भी चुनाव करीब आते हैं तब—तब सरकार से अपनी मांगों को मनवाने के लिए कर्मचारी संगठन और अन्य तमाम संगठन सरकार पर दबाव को लेकर सड़कों पर उतर आते हैं। 2020—21 में कौन सा चुनाव था जब किसानों ने महीनों दिल्ली के बॉर्डर पर डेरा डाले रखा था। इन देश के किसानों की समस्याओं को समझने के लिए सत्ता में बैठे लोग क्यों तैयार नहीं है किसानों को कोई शौक नहीं है कि वह अपना घर परिवार और काम धंधा छोड़कर सड़कों पर गर्मी—सर्दी की मार के साथ पुलिस की प्रताड़ना का सामना करें। वह अगर लंबे समय से अपनी जायज मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं तो सरकार उन पर गौर करने को तैयार क्यों नहीं है। सरकार हर साल किसानों की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी घोषित तो कर देती है लेकिन इसका लाभ सिर्फ 15 फीसदी किसानों को ही मिल पाता है 85 फीसदी किसानों को इससे वंचित रहना पड़ता है। किसान अगर यह मांग कर रहे हैं कि सरकार उनकी उपज को एमएसपी पर खरीद की गारंटी दे तो इसमें नाजायज क्या है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो आजकल पूरे देश को यह चिल्ला—चिल्ला कर बता रहे हैं कि यह मोदी की गारंटी है तो वह किसानों को बुलाए और कहे कि उन्हें एमएसपी की कानूनी गारंटी देते हैं। बात खत्म हो जाएगी। किसानों की दूसरी मांग है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप एमएसपी तय की जाए। वही सीधी बात है कि जब आपने स्वामीनाथन आयोग का गठन इसके लिए किया था तो अब उसकी सिफारिशों पर अमल क्यों नहीं किया जा रहा है। उनकी तीसरी मांग कर्ज माफी और शहीद आंदोलनकारियों को मुआवजा देने को लेकर है। केंद्र सरकार ने बीते 10 सालों में 10 लाख करोड़ से अधिक के कर्ज उघोगपतियों के माफ किए हैं लेकिन किसानों का कर्ज माफ करने की जहमत नहीं की गई। कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं तो करें सरकार उन्हें 500 रूपये महीना सम्मान राशि दे रही है उनके लिए वह काफी है। अभी बीते दिनों पंजाब में किसानों ने 75 ट्रॉली कीनू को ट्रैक्टर से रौंद कर नष्ट कर दिया गया क्योंकि उन्हें इसकी 5 रूपये किलो भी कीमत नहीं मिल रही थी, किसान अपने उत्पादों को सड़कों पर फेंकने और नष्ट करने पर मजबूर हो गये क्योंकि उन्हें इसकी उत्पादन लागत भी नहीं मिल पा रही है फिर उनके लिए एमएसपी का क्या औचित्य रह जाता है। सत्ता में बैठे लोग किसानों की आय दो गुना करने की गारंटी देते हैं लेकिन देश की आधी आबादी जो खेती पर निर्भर है उसकी असल स्थिति क्या है उसे सत्ता में बैठ लोग अगर समझने के लिए तैयार नहीं है तो फिर उनके दिल्ली की ओर कूच करने के सिवाय और रास्ता ही क्या बचा है? अब उन्हें पंजाब के सिंधु बॉर्डर की तरह पुलिस का विरोध झेलना पड़े या फिर लखीमपुर खीरी की तरह कोई सत्ता के मदहोश में उन्हें गाड़ियों से रौंद डालें या फिर पुलिस उन पर लाठी—डंडे बरसाए। जिस पर संज्ञान लेते हुए हरियाणा पंजाब की हाईकोर्ट ने कहा कि देश के अन्नदाताओं पर बल प्रयोग किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए अभीष्ट नहीं हो सकता है। लेकिन किसान अपना आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से करें यह भी जरूरी है। उन्हें 2021 जैसी अलोकतांत्रिक और गैरकानूनी गतिविधियों को कदाचित भी अंजाम नहीं देना चाहिए।

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