भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में अबकी बार 400 पार के जिस नारे के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है उस लक्ष्य को बिना नीतीश के हासिल नहीं किया जा सकता था। प्रतिबद्धता का दरवाजा तोड़कर भाजपा और एनडीए नें नीतीश कुमार और जनता दल यूनाइटेड को अपने पाले में खींच लिए जाने के बाद अब चारों तरफ से यह आवाज सुनाई दे रही है कि बिहार की तो सभी 40 सीटें आ गई भले ही अभी चुनाव कार्यक्रम की भी घोषणा न हुई हो लेकिन चुनाव से पहले ही सभी सीटें अपने खाते में जोड़ लेने की इस गणित को समझना जरूरी है। भाजपा जिसने सभी राज्यों के लिए इस बार एक अंक गणित का फार्मूला तैयार किया है वह तभी पूरा होगा जब चुनाव से पहले भाजपा अपने पूरे प्लान को एजुकेट कर पाएगी। भाजपा अब जिस नीति पर आगे बढ़ रही है उसके तहत सिर्फ दूसरे दलों के नेताओं को ही नहीं राजनीतिक दलों के एनडीए में समायोजन की नीति पर भी तेजी से काम किया जाएगा। किस—किस राज्य में कौन—कौन से नेता और दल एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं और किसके आने से कितनी सीटें और बढ़ सकती है इसका पूरा चार्ट भाजपा के नीतिकारों की जेब में पड़ा है। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे भी हो सकते हैं तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जयंत चौधरी भी और चंद्रबाबू नायडू भी हो सकते हैं। ऐसे दलों और नेताओं की फेरिश्त काफी लंबी है जो दल साथ नहीं आ सकते उनके कुछ कद्दावर नेता तो आ ही सकते हैं जिनके आने से कुछ हार वाली सीटों की जीत वाली सीटों में तब्दील किया जा सके। अयोध्या में संपन्न हुए प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के संपन्न होने के बाद हिंदुत्व के मुद्दे को जो नई धार मिली है उसका भी भाजपा को बहुत बड़ा फायदा भले ही होता हुआ न दिखे लेकिन फायदा होगा इससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता है। भाजपा के इस राजनीतिक प्लान का मतलब क्या है विपक्ष का इस बार सूपड़ा साफ या और कुछ। अब बात लोकतंत्र की भी कर लिया जाना जरूरी है। जिसको विश्व का सबसे पुराना और मजबूत लोकतंत्र कहा जाता है, क्या सिर्फ एक अकेले दल के इतने सशक्त और सक्षम होने की स्थिति में लोकतंत्र के लिए हितकारी हो सकता है क्या ममता की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस तथा सपा—बसपा जैसे राजनीतिक दलों को लोकतंत्र की हिफाजत के लिहाज से सक्षम माना जा सकता है। कांग्रेस जैसी बड़ी और मजबूत पार्टी का अगर यह हाल हो सकता है तो बाकी की क्या बिसात है यह भी शायद सोचा जा सकता है। ऐसी स्थिति में देश की राजनीति और लोकतंत्र की दिशा और दशा क्या होगी 2024 का यह लोकसभा चुनाव और उसके चुनावी नतीजे ही तय करेंगे। अब तो बस यह इंतजार करिए कि नीतीश के बाद अगला टारगेट कौन?