यह लो हो गया खेला

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बीते तीन दिनों में बिहार की राजनीति में जो भी कुछ घटित हुआ है वह भले ही देखने में यह लग रहा हो कि इतने कम समय में इतना सब कुछ कैसे हो गया? लेकिन इसकी पटकथा इंडिया गठबंधन के तुरंत बाद से ही लिखी जानी शुरू हो गई थी। तीन दिन में इसे सार्वजनिक भर किया गया है। इंडिया गठबंधन का अस्तित्व समाप्त करने की यह राजनीति जिससे अब पूरी तरह पर्दा उठ चुका है, नीतीश कुमार के नवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने और एनडीए में शामिल होने के साथ ही इसका पटाक्षेप हो चुका है। बिहार में एक बार फिर सत्ता के इस फेरबदल का संबंध सिर्फ बिहार की राजनीति तक ही नहीं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव से है। भले ही बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक के बाद एक नए रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा रहे हो लेकिन उनकी यह पाला बदल की राजनीति उन्हें किस मुकाम पर ले जाकर छोड़ेगी इसके बारे में अभी कोई भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी ही होगी। अभी सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार और उनके इस फैसले ने फिलहाल विपक्ष का सारा खेल खराब कर दिया है। नीतीश कुमार जिन्होंने एक विधानसभा के कार्यकाल में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उनका एनडीए में भविष्य क्या होगा यह जेडीयू का लोकसभा चुनाव में कैसा प्रदर्शन रहता है इस पर अधिक निर्भर करेगा? वर्तमान दौर की राजनीति जो सिर्फ निजी हितों और स्वार्थो की परिधि में घूम रही है उसे भले ही नेता स्वीकार करने में कोई संकोच न कर रहे हो लेकिन देश की जनता की इस बारे में क्या राय है यह तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे। फिलहाल भाजपा जिसने चंद समय पहले नीतीश कुमार के लिए दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए थे उन्हें वापस साथ लाने में अपना फायदा ही फायदा दिख रहा है। वहीं जनता दल यूनाइटेड जो बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी है उसे और नीतीश कुमार को भी सीएम पद से इस्तीफा देने और फिर शाम को सीएम पद की शपथ लेना ही मुनाफे का सौदा लग रहा है। जहां तक इंडिया गठबंधन की बात है तो भाजपा ने अपने इस बड़े दांव से उसे चारों खाने चित कर दिया है। कल तक तृणमूल कांग्रेस, सपा और आप जैसे जो दल अपनी—अपनी तड़ी दिखा रहे थे अब सभी अपनी—अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग—अलग पकाते दिखेंगे। अब इस गठबंधन का कोई वजूद नहीं रहेगा। अगर राहुल गांधी और कांग्रेस इस 2024 के चुनाव में कोई चमत्कारिक परिणाम हासिल कर सके तो अलग बात है बाकी अन्य कोई भी दल किसी प्रभावशाली भूमिका में नजर आएगा इसकी कम ही उम्मीद है। भाजपा को लोकसभा चुनाव से पहले जो भी खेला करना था वह कर चुकी है। अब देखना यह होगा कि क्या देश की जनता भी इस बार कोई बड़ा खेला करेगी? इसकी उम्मीद इसलिए की जा सकती है क्योंकि जनता भी अब इस अवसरवादी राजनीति के खेल और गठबंधन की उल्टा पलटी से ऊब चुकी है।

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