धामी की परीक्षा का समय

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भले ही अब तक के अपने कार्यकाल में पार्टी के शीर्ष नेताओं का आशीर्वाद लेते रहे हो और समय—समय पर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा भी उनकी पीठ थपथपाते रहे हो लेकिन वह अपनी पार्टी के सियासी मिजाज को भी बखूबी जानते हैं। उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार में चंद ही महीनों में तीन—तीन मुख्यमंत्रियों को बदले जाते देखा है और विधानसभा चुनाव में हार जाने के बाद भी स्वयं को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए देखा है। हाई कमान की नजर में जो उतर गया या हाई कमान ने जो एक बार सोच लिया उसके क्रियान्वयन में फिर कोई देरी नहीं होती है। भले ही मुख्यमंत्री धामी पार्टी की गाइडलाइन पर चलते हुए तमाम कामों को आगे बढ़ा रहे हो लेकिन अब उनके सामने आगामी लोकसभा चुनाव परिणाम की चुनौती सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती है। वह और उनकी सरकार तथा संगठन लंबे समय से इसकी तैयारियों में जुटा हुआ है। लोकसभा चुनाव के लिए प्रदेश सरकार ने कई मुद्दे तैयार कर लिए थे जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किए जाने सहित बहुत कुछ था। लेकिन लोकसभा चुनाव पूर्व मूल निवास और भू कानून जैसे मुद्दों ने ऐसी रंगत पकड़ी कि अन्य सभी उपलब्धियाें पर यह मुद्दे भारी पड़ते दिख रहे हैं। बीते कल भाजपा के सभी संगठन पदाधिकारियों की संयुक्त बैठक में मुख्यमंत्री धामी ने जिस तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वह लोगों को यह विश्वास दिलाए कि उनकी सरकार ही राज्य में मूल निवास और सख्त भू कानून लाएगी तथा यूसीसी लागू करेगी, विपक्ष भ्रम फैलाने का काम कर रहा है। उनकी इस अपील में उनकी चिंता और बेचैनी को साफ देखा और समझा जा सकता है। वह अच्छी तरह से जानते हैं कि अब चुनाव से पूर्व वह भले ही यूसीसी कानून तो ला सकते हैं लेकिन मूल निवास और भू कानून पर कोई ऐसा फैसला नहीं ले पाने की स्थिति में है जैसा कि इन मुद्दों को लेकर आंदोलन करने वाले लोग मांग कर रहे हैं। इन दोनों ही मुद्दों पर वह बीते समय में कुछ फैसले लेकर यह समझाने की कोशिश करते ही दिखे हैं कि इस विषय को लेकर वह और उनकी सरकार पूरी तरह गंभीर है। लेकिन मूल निवास और भू कानून पर अब लिए गए इन फैसलों को राज्य के लोग टालने के प्रयास के तौर पर देख रहे हैं। उनका साफ कहना है कि हमें समिति गठन जैसे अस्थाई प्रयास नहीं चाहिए और कोई आश्वासन नहीं चाहिए। सरकार यह बताएं कि दोनों ही मुद्दों पर वह क्या कर रही है। दून में जब इन मुद्दों पर स्वाभिमान महारैली निकाली जा रही थी तब भाजपा को इस बात का अनुमान तक नहीं था कि इसके पीछे पूरा राज्य उमड़ पड़ेगा। भाजपा की दूसरी बड़ी गलती यह रही है कि उसने उसी दिन इस महारैली को बेअसर साबित करने के लिए ट्टमोदी है न’ रैली का आयोजन करने का फैसला लिया। भाजपा की इस रैली ने आग में घी डालने का काम किया और अब प्रदेश के लोग भू कानून और मूल निवास के मुद्दे पर मुट्ठी ताने एकजुट होकर खड़े दिखाई दे रहे है। कुमाऊँ मंडल में एक स्वाभिमान महारैली और कल दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडियों की हुंकार इसका संदेश दे रही है। मुख्यमंत्री धामी और प्रदेश भाजपा अब इसे लेकर अत्यंत ही आशंकित दिखाई दे रहे हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य में सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रचा था अब तीसरी बार सभी पांचों सीटों पर जीत की जिम्मेदारी महेंद्र भटृ और पुष्कर सिंह धामी के कंधों पर है। भले ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अबकी बार 400 पार के साथ चुनाव में जा रहा हो लेकिन जीत की हैट्रिक के साथ जीत को रिकॉर्ड जीत बनाने की भी चुनौती आसान काम नहीं है। प्रदेश की भाजपा सरकार की धरातल पर अपनी कोई बड़ी उपलब्धि उसके नाम नहीं है भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के मुद्दे भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसे में अकेले यूसीसी जिसके बारे में अभी यह भी पता नहीं है कि उसे कितना समर्थन मिलेगा। सीएम धामी की बेचैनी भी स्वाभाविक है वह इस परीक्षा में पास व फेल होते हैं उनका राजनीतिक भविष्य भी इसी पर टिका हुआ है।

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