देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस बीते एक दशक से केन्द्रीय सत्ता से बाहर है। देश की सत्ता पर आधी सदी तक कांग्रेस ने निष्कंटक रूप से राज किया है। सत्ता मद की वह पराकाष्ठा देश के लोगोें ने देखी है जब कांग्रेसी नेता इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा जैसे नारे लगाया करते थे। लेकिन नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद देश की राजनीति में आये बदलाव ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। केन्द्रीय सत्ता से बाहर होने के बाद तमाम राज्यों की सत्ता से भी वह बेदखल होती जा रही है। कांग्रेस के नेता जो सत्ता भोग के आदी हो चुके थे उन्हे यह बदलाव कतई भी पच नहीं पा रहा है। मुसीबत यह है कि उनका कोई प्रयास सफल होता नहीं दिख रहा है। जिसने इन नेताओं की सोच और समझ को भी उल्टा कर दिया है। यह ठीक है कि विपक्ष का काम विरोध करना है लेकिन हर काम का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। भाजपा सरकार या उसके नेताओं द्वारा अगर कोई जन विरोधी या राष्ट्र विरोधी काम किया जाता है तो विपक्ष को उसका उग्र विरोध करना ही चाहिए। लेकिन अच्छे काम व फैसलों की विपक्ष सराहना भले ही न करे लेकिन उनका विरोध भी नहीं किया जाना चाहिए। मगर कांग्रेस नेताओं ने विपक्ष की सकारात्मक राजनीति करने के विवेक को खो दिया है। या यूं कहे कि भाजपा की नई तरह की राजनीति ने कांग्रेसियों के चश्मे को उल्टा कर दिया है कि उनका नजरिया हर एक काम को उल्टा ही देख या समझने लगा हैं। अभी बीते दिनों सिलक्यारा सुरंग हादसे के वक्त भी सूबे के कांग्रेसी नेता सुंरग में फंसे लोगों की जान की परवाह करने से ज्यादा सरकार की घेराबंदी करते नजर आये थे और जब श्रमिक सुरक्षित बाहर निकाल लिये गये तो उन्हे अपनी गलती का अहसास होने पर रेस्क्यू टीमों को पुरस्कृत करते देखा गया। राज्य सरकार द्वारा इन दिनों ग्लोबल इंन्वेस्टर्स समिट का जो आयोजन किया जा रहा है उसे लेकर भी सूबे के तमाम कांग्रेसी नेता सवाल खड़े कर रहे है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल में होने वाली गलतियों को लेकर सरकार की घेराबंदी कर रहे है। अगर उस प्रयास में कुछ गलतियंा हुई या वह प्रयास असफल रहा तो इसका मतलब यह तो नहीं होता कि अब जो प्रयास किया जा रहा है वह भी असफल ही रहेगा। अगर धामी सरकार का यह प्रयास सफल रहता है तो इसमें कोई संदेह नही है कि है कि यह राज्य की आर्थिकी और समाज की दिशा दशा बदलने वाला एक मील का पत्थर भी साबित हो सकता है। कांग्रेस इसे लेकर तमाम तरह के सवाल उठाये जा रही है कि यह एक चुनावी कार्यक्रम है तथा इसमें भीड़ जुटाने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बुलाया जा रहा है। जिस कार्यक्रम में बिना पास किसी की भी इंट्री संभव नहीं है वहंा कैसे भीड़ जुटाई जा सकती है यह कोई चुनावी रैली या जनसभा नहीं है तमाम वीवीआईपी और देश दुनिया के बड़े—बड़े उघमियों के इस कार्यक्रम में आम लोगों या भीड़ का कोई कोई काम ही नहीं है तो विपक्ष का यह बेतुका विरोध नहीं तो और क्या है? सच यह है कि कांग्रेस को अपनी इस सोच के चश्में को सीधा करना ही पड़ेगा। उसके नीति नियंताओं को यह तय करना चाहिए कि उन्हे किस बात का विरोध करना है और किस मुद्दे पर चुप रहना है। इन दिनो राज्य की कानून व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है। अमृता हत्याकांड से लेकर अंकिता हत्याकांड तक महिलाओ की सुरक्षा का सवाल बड़ा सवाल है। राज्य में हत्याओं से लेकर डकैतियों से लेकर तमाम बड़ी बड़ी आपराधिक घटनांए घट रही है जिन्हे लेकर कांग्रेसियों को सड़कों पर उतरना चाहिए। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पलायन को लेकर आंदोेलन खड़ा करे लेकिन वैसा कुछ कांग्रेसी करते नजर नहीं आ रहे है। उन मुद्दो को लेकर वह पत्रकार वार्ताएं कर रहे है और धरने दे रहे है जो मुद्दे मुद्दे ही नहीं है। इस तरह के विरोध से विपक्ष का कुछ भला होने वाला नहीं है।