यह समय की मांग है या फिर चुनावी रंगत कि राज्य में लोकसभा चुनाव से पहले एक ऐसे आंदोलन की बात पर चर्चा हो रही है जैसा आंदोलन अलग राज्य गठन के लिए चलाया गया था। खास बात यह है कि इस आंदोलन की चर्चा का केंद्र बिंदु वही मातृशक्ति है जिसने राज्य के आंदोलन में अग्रणीय भूमिका निभाई थी। भले ही इस सूबे के तमाम नेता राज्य गठन से लेकर आज तक आंदोलनकारियों के सपनों का राज्य बनाने की बातें करते रहे हो लेकिन क्या आम आदमी और आंदोलनकारियों ने एक ऐसे ही राज्य की कल्पना की थी जैसा वर्तमान में राज्य है। बात अगर एक सच्चे आंदोलनकारी के नजरिये से सोची या कही जाए तो इसका साफ जवाब यही है कि कदाचित भी नहीं। अगर इस सवाल का जवाब हां होता तो न तो सूबे के नेताओं को राज्य गठन के दो दशक बाद जनता को यह भरोसा दिलाने की जरूरत पड़ती कि वह आंदोलनकारियों के सपनों का राज्य बनाएंगे और न आज सूबे की मातृशक्ति द्वारा एक और जन आंदोलन चलाने के बारे में ही सोचने की जरूरत होती। इन बीते 20 सालों में राज्य में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो नहीं होना चाहिए था। व्यवस्थागत गलतियों के कारण ही इस सोच को हवा मिली है। कांग्रेस व भाजपा जिन्होंने सूबे की सत्ता अब तक संभाली है दोनों के ही कार्यकाल में जिस तरह से बड़े—बड़े घपले या घोटाले हुए हैं उनके लिए भले ही कोई दल या नेता जिम्मेवारी ले न ले लेकिन सिर्फ वही जिम्मेदार है। जिस भर्ती घोटाले का खुलासा बीते समय में हुआ है वह कोई मामूली घटना नहीं है सूबे के वह युवा जिन्होंने खुद राज्य आंदोलन में अपना खून पसीना बहाया वह कितने आहत हुए हैं उसकी कल्पना शायद सत्ता में बैठे लोग नहीं कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि शायद इस राज्य के गठन का मूल उद्देश्य जैसे नेताओं और नौकरशाहों की लूट खसोट के लिए ही हुआ था। इस लूट खसोट के दो दशकों में विकास और कानून व्यवस्था के मुद्दों को कभी तवज्जो ही नहीं दी गई। सबका ध्यान सिर्फ खनन और जमीनों की लूटपाट पर ही केंद्रित होकर रह गया। राज्य आंदोलनकारी महिलाएं नीतिगत सुधार की मश्ंाा लेकर जिस आंदोलन की बात कर रही है उसकी परिणिति क्या होगी यह आने वाला समय ही बताएगा हो सकता है कि इस आंदोलन की बात भी चुनावी रंगत हो और अपने क्ष्ौतिज आरक्षण तथा अन्य लाभ के मुद्दों को सुलझाने के ेलिए ही की जा रही हो। जैसे चुनाव से पूर्व सभी सामाजिक संगठन और कर्मचारी संगठन अपनी मांगों को मनवाने के लिए आंदोलन या सरकार को सबक सिखाने की चेतावनी देकर करते रहे हैं। लेकिन दो दशक का समय बीतने के बाद भी रामपुर तिराहा जैसे तमाम मामलों में शहीदों को इंसाफ न दिला पाना और सरकारों की नीतिगत खामियों के कारण भ्रष्टाचार का चरम सीमा पर पहुंचना राज्य में जमीनों और जंगल की लूट होना, कानून व्यवस्था, शिक्षा और पहाड़ पर अपेक्षित विकास न होना जिसके कारण गांवों का खाली होना आदि तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिन पर राज्य में एक बड़े आंदोलन की जरूरत है। इस सच से इन्कार नहीं किया जा सकता है।