सत्ता में बैठे लोग चाहे जितने भी दावे करे कि उन्हें भ्रष्टाचार कतई भी बर्दाश्त नहीं है। उनकी सरकार भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है लेकिन यह सब कुछ हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत को चरितार्थ करने वाला ही है। भ्रष्टाचार उत्तराखंड ही नहीं अपितु पूरे देश की एक ऐसी बड़ी समस्या है जिसका समाधान न तो अब तक हो सका है और न ही होने की संभावनाएं दूर—दूर तक दिखाई देती हैं। बात उत्तराखंड की अगर की जाए तो राज्य गठन के साथ ही उत्तराखंड में व्यापक स्तर पर घपलों घोटालो का जो एक सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक अविराम जारी है। एक समय उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज रहने वाले दोनों दलों भाजपा और कांग्रेस के नेता चुनाव के समय एक दूसरे के कार्यकाल में हुए घपलों घोटाले की सूचिंया अपनी जेब में डालकर घूमते थे। यही नहीं मतदान स्थलों के आसपास इन दलों द्वारा एक दूसरे के घोटाले की सूचियां के बड़े—बड़े होर्डिंग्स भी लगाये जाते थे और यह साबित करने की होड़ रहती थी कि हमारे शासन काल में तुम्हारे शासनकाल से कम घोटाले हुए। हालांकि अपनी कमीज को दूसरों से ज्यादा सफेद बताने वाले यह दोनों दल और उनके नेताओं में कोई भी किसी से कम नहीं रहा है। जिसे भी सत्ता में आने का मौका मिला उसने खूब बहती इस भ्रष्टाचार की गंगा में हाथ धोये। जिनका उल्लेख यहां किया जाना संभव नहीं है उत्तराखंड का हर एक नागरिक इस सच्चाई को जानता भी है और मानता भी है कि यहां दूध का धुला कोई भी नहीं है। लेकिन इससे भी बड़ी विडम्बना यह है कि इन घोटालों की जांच के नाम पर भी हमेशा लीपापोती का काम ही होता रहा है। सैकड़ो बड़े घोटाले सामने आने के बाद भी आज तक इनकी जांच किसी मुकाम तक नहीं पहुंच सखी है और न आज तक किसी नेता को जेल हो सकी है। हर घोटाले की जांच एसआईटी को सौंप दी जाती है और सालों साल जांच की प्रक्रिया चलती रहती है और मामला ठंडा बस्ते में चला जाता है। अब राज्य में सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने वालों की संख्या कम नहीं रही और न हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वालों की संख्या कम है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के कई मामलों में एसआईटी जांच को असंतोष जनक बताते हुए हाईकोर्ट द्वारा उनकी जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए जा चुके हैं। उघान विभाग में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश कल ही हाई कोर्ट द्वारा दिया गया है इससे पूर्व टाइगर सफारी घोटाले की जांच भी हाईकोर्ट ने सीबीआई से कराने के आदेश दिए थे जो चार दिन पहले की ही बात है सवाल यह है कि उस एसआईटी का क्या होगा जिस पर भरोसा कर हर मामले की जांच सरकार सौंपती आई है हाई कोर्ट अगर इस तरह से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच सीबीआई को सौंपता रहा तो इससे सरकार के साथ और एसआईटी विश्वसनीयता तो खतरे में पड़ जाएगी। बात चाहे पाखरो रेंज में टाइगर सफारी घोटाले की हो या फिर उघान घोटाले की भ्रष्टाचार के मामले में दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए और वह तब तक नहीं हो सकता है जब तक उनकी निष्पक्ष जांच नहीं होगी सिर्फ भ्रष्टाचार कतई बर्दाश्त करेंगे। उत्तराखंड की सरकार को लोकायुक्त के गठन तक के निर्देश तो हाई कोर्ट को देने पड़ रहे हैं ऐसी सरकार से भला यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह भ्रष्टाचार रोकने के लिए वास्तव में सजग हैं या ईमानदाराना कोशिश से कर रही है। सत्ता में बैठे लोगों का अपनी कथन और करनी के इस फर्क को समझने की जरूरत है।