उत्तराखंड के लोग मानसूनी आपदा के कारण किस तरह की मुसीबतें उठाने पर विवश हैं इसे बीते कल सोशल मीडिया पर आई उन दो तस्वीरों से समझा जा सकता है जिनमें से एक तस्वीर चमोली के देवाल और दूसरी उत्तरकाशी के केसु घाटी से सामने आई। देवाल क्षेत्र में बाण गांव की एक गर्भवती महिला की तबीयत बिगड़ने पर बुराकोट नदी (गदेरे) पर बंास बल्लियंा रखकर अस्थाई पुल बनाया और महिला को कुर्सी पर बैठाकर उफनते गदेरे को पार कर अस्पताल पहुंचाया गया। देवाल क्षेत्र में भारी बारिश के कारण लोहजगबाण सड़क बुराकोट में टूट गई है और पुल भी टूट गया है। मजबूरी में भले ही ग्रामीणों ने इस साहसिक काम को करके पीड़िता को अस्पताल तक पहुंचा दिया हो लेकिन यह काम कितना जोखिम भरा था इस तस्वीर को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। जरा सी चूक कई जिंदगियों पर भारी पड़ सकती थी। मुख्यमंत्री ने अभी 15 अगस्त को पहाड़ की महिलाओं को ऐसी अवस्था में एअरलिफ्ट करने की योजना शुरू करने की बात कही गई है। सवाल यह है कि शासन—प्रशासन एयर एंबुलेंस तो उपलब्ध करा सकता है लेकिन जिन क्षेत्रों में सड़क या पैदल मार्ग से भी पहुंचना मुश्किल हो वहां क्या सरकार हेलीपैड भी बनवा देगी? सही मायने में उत्तराखंड की सरकारों द्वारा अब तक ऐसी ही हवाई प्लानिंग की जाती रही है। दिल्ली हिंडन एयरपोर्ट से पिथौरागढ़ के लिए शुरू की गई हवाई सेवा सालों बाद भी सुचारू रूप से संचालित नहीं हो सकी है। ऐसे में सीएम धामी महिलाओं को यह सेवा कैसे उपलब्ध कराएंगे यह वही सोच सकते हैं या जान सकते हैं। दूसरी तस्वीर उत्तरकाशी के केसु घाटी से सामने आई थी जिसमें कुछ स्कूली छात्र—छात्राएं एक उफनते हुए खतरनाक गधेरे को तार और रस्सी से बनाए गए अस्थाई पुल को जान जोखिम में डालकर पार करते दिख रहे हैं। उत्तराखंड के छात्र—छात्राओं को शिक्षा के लिए इस तरह जान जोखिम में डालकर स्कूल जाने की ऐसी तस्वीरें आए दिन राज्य के किसी न किसी हिस्से से आती ही रहती हैं लेकिन एक तरफ सरकार पढे़गी बेटियां तभी तो आगे बढ़ेगी बेटियां जैसी मनभावन बातें करती है वहीं दूसरी तरफ उत्तरकाशी से आने वाली यह तस्वीर है जो यह बताती है कि क्या ऐसे पढ़ेंगी बेटियां और आगे बढ़ेगी बेटियां? राज्य के शिक्षा मंत्री को और मुख्यमंत्री को इन तस्वीरों पर गौर जरूर करना चाहिए। सूबे में इस मानसूनी आपदा के कारण हजारों लोग बेघर हो गए हैं और उनका घर बार तथा कारोबार ही नहीं जमीन भी आपदा की भेंट चढ़ गई है। बीते दिन विकासनगर जाखंन में बारिश और भूस्खलन से भारी तबाही देखने को मिली लोगों के घर जमींदोज हो गए और गांव टापू में तब्दील हो गए लोग अपनी बर्बादी का मंजर देख हैरान—परेशान हैं लेकिन उनके हिस्से में अब सिर्फ विवशता ही है कहां जाएं और क्या करें क्या खाएं और कैसे जिंदा रहे? ऐसे ही अनेक सवाल लोगों के सामने मुंह बाए खड़े हैं। ऐसा ही हाल काशीपुर में ढेला नदी के किनारे बसे लोगों का भी है तथा धनोल्टी के चिपलटी क्षेत्र का है जहां दर्जन भर से अधिक गांवों का संपर्क शहर से टूट चुका है और अतिवृष्टि के बेग में लोगों के घर मकान तथा जमीने सब कुछ नष्ट हो चुका है। देखना यह है कि सरकार इन आपदा प्रभावितों के जख्मों को भरने का क्या कुछ प्रयास करती है?