विपक्षी एकता के प्रयास

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इन दिनों 2024 के चुनाव के मद्देनजर जहां भाजपा अभी से चुनावी तैयारियों में जुट चुकी है वही समूचा विपक्ष 2019 की तरह एक बार फिर संयुक्त मोर्चा बनाने के प्रयासों में लगा हुआ है। इससे एक बात तो साफ है कि विपक्ष के पास कोई एक दल ऐसा नहीं है जो भाजपा का मुकाबला कर सके न कोई एक नेता ऐसा है जो मोदी का मुकाबला कर सके। भले ही कांग्रेस अभी हाल में आय कर्नाटक और हिमाचल के चुनाव परिणामों को लेकर उत्साहित रही हो लेकिन राज्यों की विधानसभा के चुनाव और लोकसभा के चुनाव अलग—अलग होते हैं इस बात को अब देश के मतदाता भली प्रकार से जानते हैं यही कारण है कि भाजपा 2024 के चुनाव को लेकर निश्चिंत है जबकि विपक्षी दल असमंजस में है। यही कारण है कि राष्ट्रीय स्तर पर तमाम विपक्षी दलों द्वारा एक बार फिर इस बात के प्रयास किए जा रहे हैं कि वह एक मंच पर आए और मोदी और भाजपा को हराने के लिए मिलकर चुनाव लड़े। इस बीच उत्तराखंड में प्रदेश कांग्रेस द्वारा कल गैर भाजपा दलों की बैठक बुलाकर जिस तरह से एकजुट विपक्ष के प्रयास किए गए उसके पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है यह सिर्फ करन माहरा या वह कांग्रेसी नेता ही जान सकते हैं लेकिन इस बैठक से एक बात जरूर साफ हो गई है कि प्रदेश कांग्रेस बीते दो चुनाव में करारी हार के बाद अब आत्मविश्वास खो चुकी है और उसे भी अब यही लगने लगा है कि वह अकेले दम पर भाजपा को नहीं हरा सकती है। प्रदेश भाजपा के नेता कांग्रेस के इस प्रयास पर खूब चुटकी ले रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि भाजपा को यह मौका किसी और ने नहीं दिया है खुद कांग्रेस ने ही दिया है। जो कांग्रेसी नेता खुद अपनी पार्टी के नेताओं को एकजुट नहीं कर सकते वह सभी विपक्षी दलों के नेताओं को एकजुट करने की बात या दावा करेंगे तो लोग इस पर हसेंगे नहीं तो और क्या करेंगे? कांग्रेस के इस एकता के प्रयासों से जैसे बसपा ने स्वयं को राष्ट्रीय स्तर पर अलग रखा हुआ है वैसे ही उत्तराखंड में भी अलग रखा है। भले ही उत्तराखंड में अब सपा और बसपा तथा यूकेडी का कोई दबदबा नहीं रहा है या वजूद न रहा हो लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उनका कुछ भी वोट प्रतिशत नहीं है। लेकिन कांग्रेस के साथ किसी तरह का राजनीतिक गठबंधन करने से इन तमाम दलों द्वारा जिस तरह से परहेज किया जा रहा है वह कांग्रेसियों के लिए एक बड़ा सबक है। राष्ट्रीय स्तर पर या फिर प्रांतीय स्तर पर आने वाले समय में विपक्षी एकता के यह प्रयास कितना रंग लाते हैं समय ही बताएगा। आज देश के लोगों के मन में एक सवाल जरूर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार केंद्रीय सत्ता पर काबिज होने का वैसा करिश्मा कर पाएंगे जैसे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह की तरह अपनी दो पालिया पूरी कर पूर्व पीएम की सूची में शामिल हो जाएंगे। हालांकि स्थितियों और परिस्थितियों में आए बदलाव तथा मोदी और डॉ. सिंह के कृतित्व व व्यक्तित्व में कोई समानता नहीं है। डॉ. सिंह को भले ही मिस्टर क्लीन कहा जाता हो लेकिन उनके कार्यकाल में उनके मंत्रियों के नाम कई बड़े भ्रष्टाचार भी रहे हैं वही पीएम मोदी के समय में तमाम भ्रष्टाचार के मामलों की गूंज संसद से सड़कों तक सुनाई देती रही हो। यही नहीं मनरेगा जैसी योजनाओं जिसने 27 करोड़ गरीबों को गरीबी से बाहर लाने का काम किया तथा डायरेक्ट कैश ट्रांसफर की योजनाएं भी कांग्रेस ने ही शुरू की लेकिन इनका प्रचार प्रसार कांग्रेस भाजपा की तरह कभी नहीं कर सकी। न ही डॉ. सिंह मोदी की तरह चुनावी भाषण दे सके और न चुनाव में उनकी सक्रियता मोदी जैसी रही। देखना होगा कि 2024 में देश की राजनीति कैसा इतिहास रचती है और विपक्षी एकता क्या कुछ गुल खिलाती है?

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