दो कदम आगे, चार कदम पीछे

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चार धाम यात्रा की व्यवस्थाएं कोई मामूली काम नहीं है। इस यात्रा में आस्था का जनसैलाब जिस तरह से उमड़ता है उसके आवागमन से लेकर उसके रहने ठहरने और खान—पान से लेकर स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेवारी एक बड़ा चुनौती पूर्ण काम है। राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यह चुनौती और भी अधिक कठिन हो जाती है। यह यात्रा कोई दो—चार—दस दिनों कि नहीं होती है पूरे 6 माह चलने वाली यात्रा की व्यवस्थाएं व्यवस्थापक के लिए भी थका देने वाली होती है। साढे़ तीन हजार फीट की ऊंचाई वाले दुर्गम क्षेत्रों तक आवश्यक सेवाओं और खाघ सामग्री को पहुंचाना कोई आसान बात नहीं है। यात्रा पर आने वाला हर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसे बेहतर सुविधा और सुरक्षा मिले लेकिन भीड़ के दबाव में कई बार इंतजाम चाहे कितने भी बड़े किए जाए छोटे पड़ जाते हैं। धामों की वहन क्षमता के सीमित होने के कारण आमतौर पर व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं। पिछली यात्रा सीजन में 50 लाख श्रद्धालु चारों धामों में पहुंचे थे। मोटे तौर पर 27—28 हजार यात्री प्रतिदिन चारों धामों में पहुंचते हैं तो इसका आशय होता है कि 6—7 हजार यात्रियों का हर दिन किसी एक धाम पहुंचना। जबकि किसी भी धाम में ढाई—तीन हजार यात्रियों के ठहरने से अधिक व्यवस्था नहीं है। ऐसे में अगर क्षमता से अधिक यात्री किसी भी धाम में रात को रुकते हैं तो शून्य डिग्री तापमान में खुले आसमान के नीचे उनका रात बिताना कितना मुश्किल होगा यह सहज समझा जा सकता है। वही रही बात दर्शन करने की तो अगर 24 घंटे भी दर्शन की व्यवस्था हो और 1800 यात्री हो तो उन्हें 1 मिनट के दर्शन भी संभव नहीं है और यह संख्या 5 हजार हो तो फिर 15—20 सेकंड ही दर्शन के लिए मिलना मुश्किल है। बीते साल भी सरकार द्वारा सभी यात्रियों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया लेकिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु बिना रजिस्ट्रेशन के ही धामों तक पहुंच गए थे। जिसके कारण केदारधाम और बद्रीनाथ धाम में भारी अवस्थाएं सामने आई थी। प्रशासन द्वारा बिना रजिस्ट्रेशन धाम जाने वाले हजारों यात्रियों को आधे रास्ते से ही बिना दर्शनों के लौटा दिया गया था इससे श्रद्धालुओं को तो भारी परेशानी और हताशा हुई ही थी साथ ही शासन प्रशासन को भी बदनामी झेलनी पड़ी थी। क्योंकि इसका संदेश पूरे देश—विदेश तक गया था। सरकार ने इस बार यात्रियों की संख्या सीमित रखने का फैसला किया था हर धाम में एक दिन में अधिकतम यात्रियों के पहुंचने की संख्या निर्धारित की गई थी तथा स्लाट अलॉटमेंट के जरिए दर्शन कराने की रूपरेखा तैयार की गई लेकिन इसका विरोध सभी स्थानीय व्यापारी व तीर्थ पुरोहित तथा पंडा पुजारी कर रहे थे। जिसके दबाओं में अब सरकार ने एन वक्त पर यह फैसला वापस ले लिया है। अब एक दिन में कितने भी यात्री किसी भी धाम जा सकते हैं। जो विरोध कर रहे थे वह भले अब यात्रियों की असीमित संख्या के फैसले से खुश हो लेकिन इससे यात्रा के दौरान अव्यवस्थाएं फैलना और यात्रियों से सेवा शुल्क और उपभोक्ता वस्तुओं की मनमानी कीमत वसूलने का रास्ता साफ हो गया है जैसा कि श्रद्धालुओं में उत्साह देखा जा जा रहा है उससे साफ है कि इस साल भी रिकॉर्ड यात्री चार धाम यात्रा पर आएंगे और अब जब सिर्फ रजिस्ट्रेशन के अलावा कोई नियम नहीं रहा है यह संख्या अत्यधिक बढ़ सकती है। देखना होगा कि यह फैसला यात्रियों के लिए कितना हितकारी सिद्ध होता है और अव्यवस्थाओं से शासन—प्रशासन कैसे निपट पाता है।

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