आम आदमी को अक्सर पुलिस प्रशासन में बैठे लोगों को आपने यह नसीहत देते देखा होगा कि वह कानून को अपने हाथ में न लें। कई लोगों को यह कहते हुए भी सुना होगा कि कानून तो सिर्फ आम आदमी के लिए होता है खास लोगों के लिए नहीं। सत्ता में बैठे लोग जब विपक्षी नेताओं को कानूनी शिकंजे में फंसा कर सलाखों के पीछे पहुंचा देते हैं तो वह कहते हैं कि हमने क्या किया है कानून अपना काम कर रहा है। कानून अंधा होता है यह बात भी आप सभी ने सुनी होगी। कानून की इस तरह की जितनी भी बातें या धारणाएं प्रचलित है वह कोई भी गलत नहीं है लेकिन इस सब के बीच भी कानून ही सर्वाेच्च है। कानून से ऊपर कोई भी नहीं हो सकता है देश का संविधान भी यही कहता है। कानून के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए यह अपराध है। हर अपराध का फैसला करने के लिए अदालतें बनी है। भले ही हमें फैसला ऑन द स्पॉट जैसा डायलॉग बहुत अच्छा लगता हो लेकिन अगर अदालतों की जगह फैसला करने का अधिकार कोई भी सरकार पुलिस को सौंप देगी तो इसके परिणाम देश और समाज के लिए अच्छे नहीं हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में तो पुलिस जिसे चाहेगी जहां चाहेगी ठोक देगी। और जिसकी लाठी उसकी भ्ौंस जैसे हालात हो जाएंगे। जब वह सत्ता में होंगे वह तुम्हें ठोकेंगे और जब तुम सत्ता में होगे तुम उन्हें ठोक दोगे। देश में जिस एनकाउंटर की संस्कृति को बढ़ावा देकर माफिया और बदमाशों को खत्म करने की प्रैक्टिस की जा रही है वह निश्चित तौर पर एक गलत परंपरा है और इसके दूरगामी परिणाम समाज और देश के लिए घातक ही होंगे। यूपी में योगी सरकार के कार्यकाल में अब तक लगभग 190 एनकाउंटर हो चुके हैं सवाल यह है क्या यूपी में अपराध खत्म हो गए? इसके विपरीत एक बिहार का भी उदाहरण है जहां पप्पू यादव, शहाबुद्दीन, अनंत सिंह, मुन्ना शुक्ला जैसे अनेक नाम जो कल तक आतंक के पर्याय बने थे वह अब या तो जेल में सजा काट रहे हैं या जेल से बाहर आकर सामान्य जिंदगी जी रहे हैं या मर गए हैं। लेकिन लोगों में उनका कोई भय नहीं है। अपराध रोकने और कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के कई मॉडल हो सकते हैं। एक यूपी का योगी मॉडल है और दूसरा नीतीश का बिहार मॉडल। बीते 2 दिन पहले यूपी के माफिया अतीक अहमद के बेटे असद को पुलिस एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया। असद निसंदेह अपराधी था कुछ लोग इस एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं तथा इस पुलिसिया प्रवृत्ति को लोकतंत्र व संविधान विरोधी करार दे रहे हैं वहीं कुछ लोग इस फैसले को अच्छा बता रहे हैं। भारत भावनाओं का देश है उसमें बह कर अनेक फर्जी एनकाउंटर भी सही साबित हो चुके हैं वहीं कुछ जायज भी फर्जी साबित हो चुके हैं। 2019 में हैदराबाद में एक चिकित्सक महिला से रेप लूट के आरोपियों को पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर में मार डाला था। मुठभेड़ के बाद पुलिस पर लोगों ने खूब फूल बरसाए थे लेकिन अब तक 10 पुलिस अधिकारी हत्या के आरोप में मुकदमा झेल रहे हैं। 2009 में दून में रणवीर सिंह एनकाउंटर की भी आपको याद होगी जिसमें 18 पुलिसकर्मियों को सजा हो चुकी है। आपको विकास दुबे कानपुर वाले का एनकाउंटर याद होगा जिस पर कई सवाल उठे। हो सकता है कल असद एनकाउंटर में ऐसा ही कुछ हो। लेकिन एक बात साफ है अपराध का न्याय न्यायालय में ही होना चाहिए पुलिस को न्यायाधीश बनकर कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए।