ट्टजा तन लगे सोइ तन जाने, कोई न जाने पीर पराई, बीते कल कालसी विकासनगर क्षेत्र के त्यूणी में एक घर में लगी आग में 4 मासूम बच्चियों की जलकर मौत हो गई। एक ही परिवार की तीन सगी बहनों की चार बच्चियों की इस दर्दनाक मौत का दर्द उनका परिवार ही समझ सकता है कि उन्होंने हादसे में क्या कुछ खो दिया है। सरकार द्वारा भले ही अब पीड़ित परिजनों को मुआवजा दे दिया जाए या शासन—प्रशासन स्तर पर कुछ कर्मचारियों को निलंबित और बर्खास्त कर दिया जाए या फिर दुर्घटना की जांच के आदेश दे दिए जाए, परिजनों के जख्म भरने के लिए काफी नहीं हो सकते हैं। इस हादसे के मामले में एक बात जो सामने आई है वह है अग्निशमन की गाड़ी में पानी न होने या फिर दमकल कर्मियों के नशे में होने की। निश्चित तौर पर यह अत्यंत ही घोर लापरवाही है। अव्वल तो क्षेत्र में अग्निशमन की व्यवस्था नाम मात्र भर की है कि सिंचाई विभाग के भवन में एक दमकल गाड़ी के भरोसे यह दमकल विभाग काम करने की औपचारिकता पूरी कर रहा है। उसके ऊपर से हालात यह है कि वह एक गाड़ी का टैंक भी खाली पड़ा रहे। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि आग की सूचना मिलने पर जब यह दमकल वाहन घटनास्थल पर पहुंचा तो सिर्फ एक कमरे में ही आग लगी थी लेकिन चंद मिनट में ही पानी खत्म हो गया और वाहन दोबारा पानी भरकर डेढ़ घंटे बाद लौटा तब तक पूरा मकान जलकर राख हो चुका था। क्योंकि मकान लकड़ी का बना था और आग लगने का कारण गैस सिलेंडर फटना या लीक होना था ऐसे में 2 घंटों में सब कुछ खत्म होगी जाना था। स्थानीय लोगों का आरोप यह भी है कि दमकल कर्मी नशे में थे। जिन्हें लोग पकड़कर स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र मेडिकल कराने तक ले गए लेकिन जांच की कोई सुविधा न होने के कारण इनका मेडिकल नहीं हो सका। दरअसल इन दमकल कर्मियों को किसी काम की तन्खाह नहीं मिल रही है। यहां उनके पास साल दो साल में एक दो बार काम आता है बाकी समय में वह अपना पी—खाकर मस्त रहते हैं क्योंकि पगार तो सरकार दे ही रही है। अभी मसूरी में हुए बस हादसे में भी ड्राइवर के नशे मेंं होने की बात सामने आई थी यह ड्राइवर भी हादसे के बाद भाग आया था जिसका पता अगले दिन लग सका है। डॉक्टर नशे में इलाज कर रहे हैं ड्राइवर नशे में गाड़ी चला रहे हैं। दमकल कर्मी नशे में आग बुझाने पहुंच रहे हैं? राज्य के शिक्षक नशे में बच्चों को पढ़ा रहे हैं तब फिर ऐसी स्थिति में आप किससे क्या अपेक्षा कर सकते हैं। नशे में कर्मचारियों का ड्यूटी करना जैसे राज्य में कोई रवायत बन गया है। और तो और जिस पुलिस महकमे की ड्यूटी कानून व्यवस्था बनाए रखने की होती है वह ड्यूटी पर शराब के नशे में देखे जा सकते हैं। भले ही ड्यूटी पर शराब पीना अपराध की श्रेणी में आता हो लेकिन इसे रोकने की तरफ कभी किसी का ध्यान नहीं जाता। जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। हर हादसे के बाद व्यवस्थाओं को ठीक करने की 4 दिन बात होती है और समाप्त हो जाती है। 2005 में त्यूणी में भयंकर भीषण अग्नि कांड हुआ था जिसमें पूरा त्यूणी बाजार जल गया था। 2011 में फिर दूसरा अग्नि कांड हुआ लेकिन इस क्षेत्र में अग्निशमन की सरकार द्वारा क्या व्यवस्था की गई? यह हमारे सामने हैं। बीते कल भी आग बुझाने के लिए हिमाचल से गाड़ी मंगानी पड़ी। डेढ़ लाख की आबादी की आग से सुरक्षा के लिए एक गाड़ी है उसके कर्मचारी भी नशे में रहते हैं फिर नेता और अधिकारी इस घटना पर घड़ियाली आंसू क्यों बहा रहे हैं?