इस देश के लोग भले ही सदियों से यह सुनते आए हो कि यह राम और कृष्ण का देश है या भगवान बुद्ध का देश है लेकिन अब हमारे देश के नेता बता रहे हैं कि यह मीरजाफर और जयचंदो का देश है। इन नेताओं ने सामाजिक और संवैधानिक मर्यादाओं की सारी हदें लांग ली। उनके द्वारा जिस तरह की भाषा—बोली, अशिष्टता और अमर्यादित टीका टिप्पणी एक दूसरे के खिलाफ की जाती है उसे सुनकर कई बार आपको भी यह भ्रम हो सकता है कि कहीं हम ऐसे ही किसी देश में तो नहीं रह रहे हैं जहां के नेता मीरजाफर और जयचंद हैं। इन दिनों भारतीय संसद में घमासान मचा हुआ है। बीते सात—आठ दिनों से संसद की कार्यवाही ठप है। नारेबाजी धरना प्रदर्शन और आरोप—प्रत्यारोपों के तीर चलाए जा रहे हैं। 15 साल में यह पहला मौका है जब संसद की कार्यवाही न चलने देने के लिए सत्तापक्ष को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। राज्यसभा में 26 और लोकसभा में 9 विधेयक लंबित पड़े हैं जिन्हें पारित किया जाना है। किंतु सत्तापक्ष राहुल गांधी द्वारा ब्रिटेन में दिए गए बयानों को लेकर उनसे माफी मांगने की मांग पर अड़ा हुआ है। वहीं विपक्ष भी सत्ता पक्ष पर अडाणी मामले की जांच जेपीसी से कराने और केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के मामले को मुद्दा बनाकर हंगामा कर रहा है। सत्ता पक्ष पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि वह अडाणी मामले की जांच से बचने के लिए ऐसे मुद्दों को उठा रहा है जो मुद्दे है ही नहीं। उधर कांग्रेस का कहना है कि राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं कहा है जो राष्ट्र विरोधी कहा जा सके। उन्होंने जो कुछ कहा है वह वर्तमान सरकार के कार्यकाल की व्यवस्थाओं पर उठाए गए वह सवाल हैं जो आज का सच है। लेकिन सत्तापक्ष जबरन राहुल गांधी को राष्ट्र विरोधी साबित करने पर आमादा है। स्थिति यह है कि संसद के दोनों सदनों का कामकाज तो ठप है ही नेताओं के बीच जो आरोप—प्रत्यारोप और जुबानी जंग अब इस स्तर पर आ चुकी है कि बीते कल भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने राहुल गांधी को भारतीय राजनीति का मीरजाफर बता दिया गया। कांग्रेसी नेता भी उनकी इस अमर्यादित टिप्पणी का जवाब दिए बिना भला कैसे रह सकते थे। कांग्रेसी नेताओं ने भी अडाणी का बचाव करने वालों को जयचंद की फौज बता डाला। भारतीय राजनीति में कौन मीर जाफर है और कौन जयचंद इस बात को वह नेता ही समझ सकते हैं जो इस तरह की टीका टिप्पणी एक दूसरे के खिलाफ कर रहे हैं। लेकिन ऐसा करके वह स्वयं ही को दुनिया के सामने नंगा कर रहे हैं यह उन्हें समझने की जरूरत है। संसद भवन जिसे लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है और जिसकी 1 दिन की कार्रवाई पर 10 करोड़ का खर्च आता है वह 10 करोड़ रूपया इस देश की खून पसीने की कमाई का होता है। देश के नेताओं की यह जवाबदेही होनी चाहिए कि वह अपने राजनीतिक हित साधने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई को यूं बर्बाद न करें। बीते सात—आठ दिन में भले ही संसद में कोई काम न हुआ हो लेकिन राजनीति के मीरजाफर और जयचंदों ने 70—80 करोड़ की बर्बादी जरूर कर दी है। संसद सत्र अभी 6 अप्रैल तक प्रस्तावित है अगर गतिरोध यूं ही जारी रहता है तो यह अपव्यय और भी बढ़ेगा। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है की वर्तमान की राजनीति न सिर्फ मुद्दों से भटक चुकी है बल्कि दिशाहीनता कि हदें पार कर चुकी है।