उत्तराखण्ड को आने वाले 2025 तक नशा मुक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री धामी द्वारा अब तक कई मंचों से इसकी घोषणा की गयी है। लेकिन क्या राज्य को नशा मुक्त बनाने की दिशा में सही प्रयास किये जा रहे है, यह एक बड़ा सवाल है? राज्य की तो बात ही छोड़ दीजिये खुद राजधानी देहरादून में की हर तीसरे घर का युवक नशे की चपेट में आया हुआ है। प्रदेश सरकार को सबसे पहले राज्य को नशा मुक्त बनाने के लिए उन पहाड़ों को खंगालना होगा जहंा सदियों से भांंग व अफीम की खेती की जाती है और जिन्हे स्थानीय प्रशासन व स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्राप्त रहता है। वर्तमान मुख्यमंत्री जो कुछ कह रहे है और कर रहे है उसमें ऐसा कुछ खास नहीं है जो पहली बार किया या कहा जा रहा हो। पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री भी अपने—अपने समय में ऐसे ही तमाम दावे करते रहे है। राज्य गठन के बाद से अब तक नशे का कारोबार राज्य में चार गुना अधिक हो चुका है। जिसने स्कूल, कॉलेज और छात्रावासों तक को इस नशे के कारोबार ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है। मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि नशा समाज के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन चुका है। सवाल यह है कि इस अभिशाप को समाप्त करने के लिए अब तक की सरकारों द्वारा क्या किया गया है? नशा तस्करी का धंधा करने वालों को अगर पुलिस पकड़ भी लेती है तो वह चार दिन में फिर बाहर आ जाते हैं और अपने धधें पर लग जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वह पहाड़ोंं पर होने वाली भांग व अफीम की खेती को नहीं होने दे साथ ही जिलों के बार्डर क्षेत्रों में कड़ी चौकसी रखे। तभी राज्य में नशे के कारोबार पर कुछ अंकुश लगाया जा सकता है। नहीं तो ख्याली पकाव पकाने जैसी ही बातें है।