कांग्रेस का अंतहीन घमासान

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कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता अगर कांग्रेस को कोई हरा सकता है तो खुद कांग्रेसी ही हरा सकते है। अगर कांग्रेसी नेता इस सत्य से इत्तेफाक रखते हैं तो उन्हें इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि कांग्रेस की उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सहित जिन तमाम राज्यों में पराजय दर पराजय हो रही है तो इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं है खुद कांग्रेसी नेता ही जिम्मेदार है। उत्तराखंड के पूर्व एआईसीसी सदस्य योगेंद्र खंडूरी ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष खडगेे को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश कांग्रेस के नेता जिस तरह से गुटबाजी में फंसे हुए हैं उससे न तो पार्टी की छवि सुधर पा रही है और न संगठन मजबूत हो पा रहा है उन्होंने इसके लिए प्रदेश प्रभारी को नाकाम साबित होने की बात कहते हुए किसी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता को राज्य का प्रभारी नियुक्त करने का सुझाव दिया है। भले ही प्रदेश कांग्रेस के बाकी बचे चंद वरिष्ठ नेता इस बात का दावा करें कि कांग्रेस में कोई गुटबाजी नहीं है लेकिन यह सिर्फ सफेद झूठ है। पोस्टर—बैनरों फोटो छपने से लेकर पार्टी के कार्यक्रमों में अपनी—अपनी ढपली और अपना अपना राग अलापने वाले कांग्रेसी नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का कोई एक भी मौका नहीं छोड़ते हैं। जो इन नेताओं के आपसी मतभेद और मनभेदों को बताने के लिए काफी है। इसका ताजा उदाहरण है प्रीतम सिंह का वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि 2022 के चुनाव में हम विधायक का चुनाव नहीं लड़ रहे थे मुख्यमंत्री का चुनाव लड़ रहे थे। इस अति कटु सत्य को भला वह कांग्रेसी नेता कैसे पचा सकते थे जो चुनाव के सालों पहले से खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए जाने की मांग को लेकर जिद पर अड़े हुए थे। सच अगर पूछा जाए तो कांग्रेस को उत्तराखंड में कमजोर करने में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए छिड़े घमासान ने ही सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। स्व. एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद शुरू हुआ यह विवाद आज तक भी जारी है। 2012 के चुनाव परिणाम जब कांग्रेस सत्ता में आई तो दिल्ली से लेकर दूून तक सीएम पद को लेकर जो जंग छिड़ी थी उसने हाईकमान को भी असहज कर दिया था। विजय बहुगुणा सीएम बन गए लेकिन उन्हें पूरे कार्यकाल टिकने नहीं दिया गया और हरीश रावत सीएम बन गए जिसका नतीजा पार्टी में बड़े विभाजन के रूप में सामने आया। यह हास्यास्पद बात है कि 2017 में तो कांग्रेस बुरी तरह हार ही गई, 2022 में भी उसे करारी हार का सामना करना पड़ा लेकिन चुनाव में सीएम की लड़ाई अपने चरम पर रही। यह हाल तब रहा जब सीएम पद के लिए लड़ने वाले भी खुद चुनाव नहीं जीत सके। प्रीतम सिंह अगर आज यह कह रहे हैं कि हम विधायक चुनाव लड़ ही कहां रहे थे हम तो सीएम का चुनाव लड़ रहे थे तो इसमें गलत भी क्या है? अब हरीश रावत जैसे नेता इसे सेल्फ गोल करने वाले नेताओं की बयानबाजी मानते हैं तो मानते रहे। हां एक बात जरूर है सच है की कभी हार न मानने वाले कांग्रेसी नेता सूबे में कांग्रेस को जरूर थका चुके हैं और यह थकान कभी कांग्रेस को जीतने नहीं देगी भले ही वह प्रदेश अध्यक्ष को बदल ले या प्रदेश प्रभारी को बदल ले।

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