उत्तराखंड की कानून व्यवस्था पर अगर लंबे समय से सवाल उठाए जा रहे हैं तो वह बेवजह नहीं है। राज्य की राजधानी सहित पूरे प्रदेश में कई ऐसे गंभीर आपराधिक मामले बीते दिनों सुर्खियों में रहे हैं जो इस बात का सबूत है कि अपराधियों में पुलिस का कोई खौफ रहा ही नहीं है। अंकिता मर्डर केस जैसे जघन्य अपराधों के बीच आए दिन हत्या, लूट और डकैती जैसी वारदातें अविराम जारी है हालात इतने खराब हो चुके हैं कि मामूली से मामूली बात को लेकर अपराधियों द्वारा फायर झोंक दिए जाते हैं या फिर गला काट दिया जाता है। बाद अगर राज्य की राजधानी की करें तो बीते 2 माह में काबीना मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल के भाई के घर दिनदहाड़े लाखों की डकैती, प्रेमनगर में आपसी झगड़े में हुई फायरिंग, राजपुर रोड पर दुकानदार पर फायर और गाड़ी आगे पीछे करने के विवाद में युवक को गोली मारने, प्रेम नगर में लड़की को लेकर धारदार हथियार से गला काटने, गुच्चूपानी में युवक की हत्या, दीपक रावत पर हमला व मौत जैसी दर्जन भर से अधिक वारदातों से आम आदमी सहमा हुआ है। अभी विधानसभा सत्र में विपक्ष द्वारा कानून व्यवस्था के मामलों को जोर—शोर से उठाया गया। यह हैरान करने वाली बात है कि पुलिस को भनक तक नहीं लगती और आंदोलनकारी राज भवन पर धरना देने पहुंच जाते हैं। अभी उधम सिंह नगर के किच्छा में यूपी पुलिस आकर एक महिला को गोली मारकर चली गई और उत्तराखंड पुलिस को पता तक नहीं चलता, ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह किस तरह की पुलिसिंग हो रही है। अभी प्रकाश में आए एक मामले में एक दरोगा द्वारा बेवजह ही अपनी शिकायत लेकर रामनगर थाने में आये व्यवसाई के साथ बुरी तरह मारपीट की जाती है। जिस पर खुद डीजीपी को संज्ञान लेने की जरूरत पड़ती है। खास बात यह है कि कल एसएसपी कार्यालय पहुंच ंकर डीजीपी ने खुद इस बात को माना है कि अपराधियों में पुलिस का खौफ नहीं रहा है और वह जहां चाहे जब चाहे किसी भी अपराध को अंजाम दे कर भाग जाते है। डीजीपी द्वारा कल अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए। जिन पर गैंगस्टर एक्ट में मामले दर्ज हुए हैं उनकी संपत्तियों को कुर्क किया जाए। बाहर से आने वाले बदमाशों के प्रवेश पर सख्ती से रोक लगाएं और अगर वह राज्य की सीमाओं में आ भी जाए तो उन्हें वापस न जाने दिया जाए। हिस्ट्रीशीटर और ईनामियों पर शिकंजा कसा जाए। उनका साफ कहना है कि पुलिस का इकबाल बना रहना चाहिए। उनके इस बयान से साफ हो जाता है कि पुलिस की कार्यप्रणाली से पुलिस का इकबाल ही खतरे में हैं। बदमाश अगर यह माने बैठे हैं कि उत्तराखंड पुलिस उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है तो फिर आम आदमी की सुरक्षा संभव नहीं है। पुलिसिंग सिर्फ खानापूर्ति के लिए नहीं होनी चाहिए पीड़ित को यह लगना चाहिए कि पुलिस उसकी मदद को तत्पर है, वही बदमाशों के मन में भी यह खौफ होना जरूरी है कि अगर हत्थे चढ़ गए तो फिर उनकी खैर नहीं है तभी कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार संभव है।