धर्मांतरण पर रोक जरूरी

0
266


जोर जबरदस्ती और लालच देकर कराए जाने वाले धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर देश की सर्वाेच्च अदालत द्वारा केंद्र सरकार से पूछे गए इस सवाल के जवाब में कि वह इसे रोकने के लिए क्या कर रही है अब हलफनामा देकर कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में धर्मांतरण शामिल नहीं है तथा वह इस समस्या की गंभीरता को समझती है और इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाएगी। एक जनहित याचिका पर की गई सुनवाई के बाद अदालत का कहना है कि संविधान के अंदर प्राप्त धार्मिक अधिकार का आशय स्वतंत्रता पूर्वक अपने धर्म का पालन करने का है न कि किसी को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करने का। समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों और महिलाओं को अगर किसी भी तरह का लालच या प्रलोभन देकर अथवा उन्हें डरा धमका कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो वह असंवैधानिक तो है ही साथ ही यह राष्ट्र और समाज में असंतुलन पैदा कर सकता है जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की एकता और अखंडता के लिए दीर्घकाल में एक गंभीर चुनौती पैदा कर सकता है। यहंा यह भी उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए राज्य सरकारों द्वारा कानून बनाने की बात कह कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की गई थी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित देश के 9 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने इस भविष्य के संभावित खतरे को भांपते हुए धर्मांतरण के खिलाफ मौजूदा कानून में संशोधन कर इसे और अधिक सख्त बनाने का प्रयास किया है। लेकिन इस जबरन होने वाले धर्मांतरण को रोकने की अपनी जिम्मेदारी से केंद्र सरकार भी यूं ही पल्ला नहीं झाड़ सकती है। निसंदेह जिस हिंदुस्तान में हम रहते हैं और कहते हैं कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं, हिंदुस्तान के हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाने का एक षड्यंत्र है जिस पर एक सोची—समझी रणनीति के तहत अन्य धर्मों के लोगों या उनके बनाए हुए संगठनों द्वारा काम किया जा रहा है अब देखना यह है कि देश की सर्वाेच्च अदालत की हिदायत के बाद केंद्र सरकार द्वारा उसे कितनी गंभीरता से लिया जाता है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here