अब हिंदी माध्यम से पढ़ाई लिखाई करने वाले छात्र—छात्राएं भी अब डॉक्टर और इंजीनियर बन सकेंगे। यह समाचार देश के हिंदी भाषी राज्यों के युवाओं को पढ़कर या देखकर निश्चित ही अत्यंत सुखद लग रहा होगा। सही मायने में यह पहल किसी चमत्कार से कम नहीं कही जा सकती है। सरकार का तर्क है कि वह इस पहल के जरिए मातृभाषा हिंदी को एक उचित सम्मान दिलाने का काम कर रही है। बीते कल गृह मंत्री अमित शाह ने मध्यप्रदेश में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की तीन पाठ्यक्रम पुस्तकों के हिंदी वर्जन का विमोचन किया। इन पुस्तकों में जिसमें एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायो केमिस्ट्री शामिल है, का अनुवाद 97 डॉक्टरों की टीम द्वारा कठोर परिश्रम के बाद किया गया है। सवाल यह है कि डॉक्टर की पढ़ाई करने के लिए साइंस की जिन बायोलॉजी और केमिस्ट्री की किताबों को छात्र—छात्राएं एमएससी और बीएससी की क्लासों में पढ़ते हैं क्या उन्हें भी अब यह किताबें हिंदी में पढ़ाई जाया करेंगी या फिर उन्हें इन किताबों को अंग्रेजी में ही पढ़ना पड़ेगा और बीएससी व एमएससी में फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी अंग्रेजी में पढ़ो फिर एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में करो। जो छात्र अंग्रेजी माध्यम से एमएससी, बीएससी कर रहे हैं या कर सकते हैं उनके लिए एमबीबीएस अंग्रेजी में करने में क्या दिक्कत हो सकती है। अच्छा होता कि पहले कॉलेज की शिक्षा को हिंदी माध्यम में भी लाया जाता। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि मेडिकल साइंस में विश्व स्तर पर जो भी शोध होते हैं इन शोध कार्याे की रिपोर्ट अंग्रेजी में ही छपती है। क्या सरकार द्वारा इन शोध पत्रों को भी हिंदी में अनुवादित कराया जाएगा? अगर नहीं कराया जाएगा तो हिंदी पढ़ कर एमबीबीएस डॉक्टर बनने वालों को इनका क्या फायदा होगा और मेडिकल क्षेत्र में होने वाले नए प्रयोगों और तकनीक की जानकारी न होने पर यह डॉक्टर नीम हकीम बनकर नहीं रह जाएंगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह कहना बहुत आसान है कि अब हिंदी पढ़ने वाले या यूं कहें कि जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती वह भी डॉक्टर और इंजीनियर बन सकेंगे बहुत आसान बात है और उनके पाठ्यक्रम पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी मुश्किल नहीं है लेकिन इसे व्यवहारिक रूप से धरातल पर उतारना उतना ही मुश्किल भी है। यूपी सरकार ने इंजीनियरिंग की पुस्तकों का भी अनुवाद हिंदी में करा लिया है। उत्तराखंड की सरकार द्वारा कल सूबे में उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय नीति लागू कर दी गई है यहां प्रारंभिक शिक्षा में 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर दी गई है लेकिन सरकार सूबे में अब तक कितनी बाल वाटिकाएं और इनके लिए टे्रंड शिक्षकों की व्यवस्था कर पाई है? यह एक अहम और बड़ा सवाल है। जब बेसिक स्कूलों की शिक्षा और शिक्षकों की बात होती है तो वहां अंधेरा ही नजर आता है। जिसके कारण लोग पब्लिक स्कूलों की तरफ दौड़ रहे हैं शिक्षा में सुधार एक बड़ी जरूरत है जिसे न तो एक दिन में किया जा सकता है न एक प्रयास से संभव है। इसके लिए दीर्घकालीन योजना और भागीरथी प्रयासों की जरूरत है।