उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा 2017 में जब सत्ता संभाली गई थी तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि योगी 5 साल बाद बुलडोजर बाबा के नाम से विख्यात हो जाएंगे और उनकी बुलडोजर वाली राजनीति इतनी तेजी से देश के अन्य तमाम राज्यों तक पहुंच बना लेगी। बीते कल सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनकी इस बुलडोजर वाली राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि अब भाजपा को अपना चुनाव चिन्ह (पार्टी सिंबल) बुलडोजर कर लेना चाहिए। दिल्ली के जहांगीरपुरी में शोभायात्रा के दौरान हुए बवाल के बाद वहां प्रशासन का जो बुलडोजर चला उसकी गूंज देश के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने वहां फिलहाल बुलडोजर पर ब्रेक लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक इस कार्रवाई पर रोक लगा दी है साथ ही पीड़ित दुकानदार मुआवजे की मांग को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। उत्तराखंड में भी धामी सरकार ने दोबारा से सत्ता में आते ही अवैध निर्माण और अतिक्रमण पर बुलडोजर चलवाना शुरू कर दिया है। सीएम धामी ने साफ कह दिया है कि अवैध निर्माणों के खिलाफ यह कार्रवाई जारी रहेगी। रामनगर, उधम सिंह नगर, हल्द्वानी तथा हरिद्वार में भी की गई बुलडोजर कार्रवाईयों का जगह—जगह विरोध हो रहा है तथा इसे सरकार की बदले की भावना से की जाने वाली कार्यवाही बताया जा रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा बीते सालों में राजधानी दून से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए गए थे। राजधानी दून में बड़ी संख्या में अवैध बस्तियां बसी हुई है। जिन पर बीते समय में बुलडोजर चलने की नौबत आ गई थी। लेकिन भवनों पर लाल निशान लगाने के बाद भी इन पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सका। तब सरकार को इन कालोनियों को बचाने के लिए अध्यादेश का सहारा लेना पड़ा था। सवाल यह है कि दून के अंदर से गुजरने वाली रिस्पना और बिंदाल नदी सहित अन्य तमाम नदी नाले और खालो पर इतना अतिक्रमण हो चुका है कि अगर इस अतिक्रमण को हटाया जाए तो दून के एक चौथाई भवन और आबादी इसकी जद में आ जाएंगी। सवाल यह है कि क्या धामी सरकार इन अवैध कॉलोनियों को जिन्हें नेताओं की भाषा में मलिन बस्तियां कहा जाता है, पर बुलडोजर चलवाने की हिम्मत दिखाई जा सकती है? अगर नहीं तो फिर जहां सरकार का बुलडोजर गरज रहा है वह क्या है? ऐसा नहीं है कि सड़कों और बाजारों में पहले अतिक्रमण हटाने के लिए बुलडोजर नहीं चलता था लेकिन तब और अब चलने वाले बुलडोजर में फर्क यह है कि तब इसका सदुपयोग अतिक्रमण के खिलाफ होता था और अब इसका प्रयोग राजनीति के बुलडोजर के तौर पर किया जा रहा है। यूपी में इसकी शुरुआत माफिया और अपराधियों के अवैध संपत्तियों पर इस्तेमाल के रूप में हुआ था और अब आम आदमी की संपत्तियों पर सत्ता का यह बुलडोजर गरज रहा है। जिसे सत्ता की हनक ही कहा जा सकता है।