आपदा का दंश कितना दुखद होता है इसका पता टिहरी व देहरादून जिले में आपदा प्रभावित क्षेत्रों से लगाया जा सकता है। यहंा सरकार द्वारा आपदा प्रभावितों को मदद पहुंचाये जाने के दावे तो किये जा रहे है लेकिन उन दावों में कितनी सच्चाई है यह आपदा प्रभावित लोग ही खूब जानते है। यहंा लोगों का कहना है कि कुछ आपदा प्रभावित क्षेत्र तो ऐसे है जहंा आपदा के पांच दिन बाद भी पेयजल सप्लाई न होने के कारण लोग गंदा पानी पीने के लिए मजबूर है। वहीं कुछ क्षेत्रों में न तो अब तक प्रशासन के लोग ही पहुंच पाये है और न ही कोई राहत सामग्री किसी को मिल सकी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अब थोड़ी से बारिश होते ही सभी लोग अपने अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों में शरण ले लेते है। वहीं अभी तक कई गावों में विघुत आपूर्ति सुचारू नही हो सकी है और ऐसे में यह ग्रामवासी अब पलायन को मजबूर हो चुके है।
सरकार जो मानसूनी सीजन शुरू होने से पहले आपदा प्रबन्धन को दुरस्त करने के दावे कर रही थी उनका आपदा प्रबन्धन तंत्र कितना दुरस्त है, इसका पता राज्य की राजधानी में ही आयी आपदा से लग जाता है जहंा आपदा के कई दिन बीत जाने के बाद भी लोग मददद न मिलने के कारण अब पलायन पर मजबूर हो चुके है। सरकार को सोचना होगा कि आपदा प्रबन्धन तंत्र को कैसे चुस्त दुरस्त बनाया जाये ताकि लोग आपदा के बाद पलायन पर मजबूर न हो।