दुर्दशा के लिए कांग्रेसी ही जिम्मेदार

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देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी जिसने 5 दशक तक देश पर एकछत्र शासन किया आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। कांग्रेस की जो वर्तमान स्थिति है, पर कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की यह प्रतिक्रिया सुनकर हैरानी होती है जो कहते हैं कि कांग्रेस ने बहुत उतार—चढ़ाव देखे हैं लेकिन हर बार वह और अधिक सशक्त होकर लौटी है। इसे इन कांग्रेसी नेताओं का मुगालता ही कहा जा सकता है क्योंकि अब कांग्रेस के पास नेहरू—इंदिरा और राजीव गांधी जैसे करिश्माई व्यक्तित्व के नेता नहीं रहे हैं। कांग्रेस की इस स्थिति के लिए कोई और राजनीतिक दल तथा नेता जिम्मेवार नहीं है बल्कि कांग्रेसी नेता खुद ही जिम्मेवार है। जिनकी राजनीतिक महत्वकाशंाए कांग्रेस से बड़ी हो चुकी है। अभी बीते दिनों ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था राजस्थान के युवा नेता सचिन पायलट सीएम अशोक गहलोत की तानाशाही से आहत है। पंजाब में अकेले नवजोत सिंह सिद्धू कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी ही नहीं कांग्रेस से बेदखल कराने की हद पर लाकर खड़ा कर चुके हैं। खुद सीएम तो नहीं बन सके अब पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी इस्तीफा देकर दावा कर रहे हैं कि वह हक और उसूलों की लड़ाई लड़ रहे हैं। बात उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की करें तो यहां भी हालात बद से अधिक बदतर है उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल में दर्जन भर बड़े कांग्रेसी नेता मंत्री और विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद 2017 के चुनाव में पार्टी की जो दुर्दशा हुई उसके बारे में कांग्रेस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। खास बात यह है कि हरीश रावत जिन नीतियों और रीतियों के आधार पर पार्टी को उत्तराखंड में चला रहे हैं वह कांग्रेस को कहां लेकर जाएगी? या जा रही है कोई और तो क्या खुद हरीश रावत भी सोचने को तैयार नहीं है। उत्तराखंड कांग्रेस के कई नेता व विधायक भाजपा में जा चुके हैं और चुनाव तक कुछ और नेता भी कांग्रेस का साथ छोड़ सकते हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। कांग्रेस के पास सभी 70 सीटों पर चुनाव में अच्छे और योग्य प्रत्याशी भी होंगे? लोग सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस जो टुकड़े—टुकड़े बंट चुकी है तथा ऐसे कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता जो अपनी जमानत भी नहीं बचा सकते अभी से टिकट के लिए सर फुटव्वल कर रहे हैं ऐसी कांग्रेस का 2022 के चुनाव में क्या हाल रहने वाला है इसके संकेत अभी से मिलने शुरू हो गए हैं। भाजपा अगर आज कांग्रेस को गुजरे कल की पार्टी कहती है तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। सिर्फ राज्यों में ही काग्रेस का दायरा नहीं सिकुड़ रहा है आने वाले समय में संसद में भी उसका विपक्षी पार्टी की भूमिका पर टिके रहना मुश्किल होगा। जो देश के राजनीति और भविष्य तथा लोकतंत्र के अच्छे संकेत नहीं कहे जा सकते हैं।

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