दुर्भाग्यपूर्ण हादसा

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तमिलनाडु के कुन्नूर में कल हुए हेलीकॉप्टर हादसे से देश को बड़ा सदमा पहुंचा है इस हादसे में हमने देश के पहले सीडीएस बिपिन रावत को ही नहीं खोया है अपितु सेना के अन्य कई बहादुर अधिकारियों और जांबाज जवानों को खो दिया है। वायुसेना के सबसे आधुनिक और सुरक्षित समझे जाने वाले इस एमआई—17 हेलीकॉप्टर के इस तरह दुर्घटनाग्रस्त होने की कोई कल्पना भी नहीं की जा सकती थी इसलिए इस हादसे पर सहज भरोसा करना भी आसान नहीं था। हादसा कैसे हुआ और इसके पीछे क्या कारण रहे यह बात जांच के बाद ही पता चल सकेगी लेकिन इस हादसे ने देश को जो अपूर्ण क्षति पहुंचाई है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। भारत सरकार द्वारा देश की तीनों सेनाओं में समन्वय और उसकी गुणवत्ता के विकास के लिए चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के पद का सृजन किया गया था। जिस पर पहली तैनाती के रूप में जनरल बिपिन रावत को नियुक्त किया गया था अभी उनके कार्यकाल को 2 साल भी पूरे नहीं हुए थे कि क्रूर काल ने उन्हें हमसे छीन लिया। अपने 46 सालों की सैन्य सेना में जनरल रावत न सिर्फ थलसेना प्रमुख जैसे पद पर रहे अपितु उन्होंने कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। वह देश और देश की सरकार के एक ऐसे बहादुर और विश्वसनीय सिपहसालार थे जिन पर रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री भी आंखें बंद करके भरोसा करते थे। उन्होंने कश्मीर में धारा 370 को हटाने का काम ही नहीं किया बल्कि वहां चलाए जाने वाले ऑपरेशन ऑल आउट में भी उनकी अहम भूमिका रही। यही नहीं पुलवामा के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अभियान उन्हीं की दिलेरी का परिणाम थे जिसकी सफलता के बाद भारत अपने दुश्मनों को उसके घर में घुसकर मारने वाला भारत बना। जनरल बिपिन रावत इन दिनों जी जान से भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के मिशन में जुटे थे वह देश की सेनाओं को विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बनाना चाहती थे, इसके लिए वह एक साथ कई योजनाओं पर काम कर रहे थे। देश की हिफाजत उनके जेहन का हिस्सा थी वहीं वह अपने सरल स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे। सेना से सेवानिवृत्ति के बाद वह अपने गृह राज्य उत्तराखंड के विकास के लिए कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे पहाड़ के लोगों का जीवन आसान बन सके और पलायन रोका जा सके अपने राज्य के लिए उनका स्नेह उन्हें तमाम व्यस्तताओं के बीच भी उत्तराखंड खींच लाता था। दो दिन बाद दून आई एम ए में होने वाली पासिंग आउट परेड में वह आने वाले थे लेकिन किसने सोचा था नियति को कुछ और ही मंजूर है। सैन्य परिवार में जन्मे जनरल बिपिन रावत ने अपने सैन्य जीवन में जिन ऊंचाइयों को छुआ उस पर देश और उत्तराखंड प्रदेश हमेशा नाज करता रहेगा।

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