अजब सरकार का गजब कारनामा : साक्षात्कार समाप्त करने को दोबारा वैधानिक कार्रवाई शुरू

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बीसी खंडूरी सरकार कर चुकी है शासनादेश जारी
2015 में सरकार ने केंद्र को भी बताया था इस बाबत

देहरादून। एक ही काम के कई—कई शिलान्यास और लोकार्पण को लेकर राजनीतिक दलों और नेताओं के बीच तकरार और तनातनी तो आपने कई बार सुनी होगी लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी एक ही विषय पर कोई सरकार बार—बार कैबिनेट में प्रस्ताव लेकर आए और शासनादेश जारी किए जाए। भले ही यह कहीं होता हो या न होता हो लेकिन उत्तराखंड में होने जा रहा है।
अभी 1 मार्च को सीएम धामी ने अपने हल्द्वानी दौरे के दौरान समूह ग की भर्तियों में साक्षात्कार खत्म करने की घोषणा की थी। बीते कल राज्य कैबिनेट की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव लाया गया कि इसके लिए नई नियमावली तैयार की जाए जिसे कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दे दी है। जबकि समूह ग की भर्तियों में साक्षात्कार की व्यवस्था को प्रदेश में तत्कालीन बीसी खंडूरी के नेतृत्व वाली सरकार 2008 में पहले ही समाप्त कर चुकी है। पूर्व सीएम बीसी खंडूरी की सरकार के समय इसका 2008 में शासनादेश भी जारी किया जा चुका है। सवाल यह है कि जब वैधानिक तौर पर साक्षात्कार की व्यवस्था को 15 साल पहले ही समाप्त किया जा चुका है तो राज्य में साक्षात्कार की व्यवस्था इसके बाद भी क्यों समाप्त नहीं की गई। यहीं नहीं इसके लिए दोबारा फिर नया कानून लाने की प्रक्रिया को क्यों दोहराया जा रहा है?
मुख्यमंत्री धामी ने जब हल्द्वानी में समूह ग की भर्तियों में साक्षात्कार समाप्त करने की घोषणा की गई तो कई जानकार लोगों ने उनकी इस घोषणा पर सवाल उठाते हुए कहा गया था कि उन्हें या तो जानकारी का अभाव है या फिर वह युवाओं को बहका रहे हैं जो नकल विरोधी प्रदर्शनों में जुटे हुए हैं। खास बात यह है कि 2008 में लाए गए इस शासनादेश के बाद राज्य में समूह ग की भर्तियां किसी ऐसी संस्था द्वारा की ही नहीं गई जहां साक्षात्कार की जरूरत पड़ती। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने राष्ट्रीय संबोधन में राज्य सरकारों से बी व सी श्रेणी की भर्तियों में साक्षात्कार समाप्त करने की बात कही गई थी। केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव पर डीओपीटी के लेटर नंबर 39020/09/0 2015 इस्टैब्लिशमेंट है, के जवाब में राज्य सरकार ने केंद्र को बताया था कि उत्तराखंड में पहले से ही बी व सी श्रेणी की भर्तियों में साक्षात्कार की व्यवस्था को समाप्त किया जा चुका है।
सवाल यह है कि जब राज्य में समूह ग की भर्तियों में साक्षात्कार की व्यवस्था को 2008 में ही समाप्त किया जा चुका है तो अब सीएम द्वारा इसकी घोषणा इतने सालों बाद क्यों की जा रही है और इसके लिए दोबारा से प्रस्ताव तैयार करने और उसे अमलीजामा पहनाने की वैधानिक कार्रवाई को क्यों दोहराया जा रहा है क्या यह सब भर्ती घोटालों का विरोध खत्म करने के लिए किया जा रहा है या फिर श्रेय लेने की राजनीति के कारण ऐसा किया जा रहा है।

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