बदहाल सड़कें मुसीबत का सबब

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अभी बीते दिनों सूबे के मुखिया पुष्कर सिंह धामी ने सड़कों की खराब स्थिति को लेकर मिल रही भारी शिकायतों पर संज्ञान लेते हुए एक ऐप लांच की गई थी, इस मौके पर उन्होंने कहा था कि अगर आपके क्षेत्र की कोई सड़क खराब है तो इस ऐप पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं और 15 दिन के अंदर आपकी सड़क बन जाएगी। आज प्रदेश की राजधानी दून सहित राज्य की लगभग 350 सड़कों के हालात ऐसे हैं जिन पर यातायात पूरी तरह से ठप पड़ा है। एक स्टेट हाईवे सहित 41 सड़कों पर तो बीते 15 दिनों से आवागमन बंद पड़ा है ऐसी स्थिति में यह सहज समझा जा सकता है कि लोगों को क्या क्या परेशानियां उठानी पड़ रही होगी। जो लोग कहीं आ—जा नहीं सकते और जिन तक कोई आपदा राहत सामग्री या जरूरी आवश्यकताओं का सामान भी नहीं पहुंच पा रहा है वह लोग किस तरह जीवन यापन कर रहे होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस साल राज्य में भारी बारिश हो रही है लेकिन जिस तरह के गंभीर हालात बने हुए हैं वह अत्यंत ही चिंताजनक है। सत्ता में बैठे लोग अगर इसका ठीकरा मानसून पर फोड़े या यह कहे कि अब बारिश हो रही है तो हम क्या करें ? तो इससे न तो प्रभावितों की समस्या का कोई समाधान हो सकता है और न ही वह अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं। राजधानी दून का हाल राज्य के किसी भी दूसरे शहर से ज्यादा खराब और चिंताजनक है। सड़कों का यहां जो हाल है वो तो है ही इसके साथ ही पूरे शहर में जो भारी जलभराव की स्थिति बनी हुई है वह नगर निगम की लापरवाही का ही नतीजा है। शहर के तमाम हिस्सों में जल निकासी की व्यवस्था डांवाडोल हो चुकी है। नदियों और नालों तथा नालियों की सफाई समय से न हो पाने के कारण अब लोग भारी गंदगी और बदबूदार पानी के बीच रहने को मजबूर हैं। राज्य में इस मानसूनी सीजन में इन खराब सड़कों के कारण क्या हाल हो गया है? बीते कल चमोली में हुए बिजली करंट हादसे के पीड़ितों को राशन किट पहुंचाने के लिए भारी बोझ पीठ पर लादकर पैदल जाना पड़ा। इस बरसात में न सिर्फ सड़कें बह गई और पुल ढह गये तथा पुलिया तेज बहाव में धराशाई हो गई बल्कि अब लोगों को पैदल चलना भी आसान नहीं रह गया है और वह अपनी जान हथेली पर रखकर इधर उधर आ जा रहे हैं। जहां तक स्थितियों के सामान्य होने की बात है उसके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। अभी तो इस मानसूनी आपदा से ही छुटकारा मिलता नहीं दिख रहा है बारिश थमेगी तो इस बारे में सोचा जाएगा। इन सड़कों की मरम्मत और निर्माण के लिए सिर्फ लंबा समय ही नहीं भारी—भरकम रकम भी चाहिए होगी, जो पुल इस दौरान टूट गए हैं उनको बनाने में सालों का समय लगेगा। भले ही मुख्यमंत्री की एप पर 15 दिन में सड़कों की समस्या का समाधान किए जाने का दावा किया गया हो लेकिन यह नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत जैसा ही है। बातें कम काम ज्यादा का नारा तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन धरातल पर संभव नहीं है।

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